नई दिल्ली. बैलंस बनाम गैंरबैलन का पोर्टफोलियो 42 बिजनेस सीट पर कोई असर डाल सकता है? शामिल हैं कि गैर-बैठक के खिलाफ अंग्रेजी दिग्गज का वोट अगर बीजेपी की तरफ से एकमुश्त हो गई और साथ में गुलामी, राम मंदिर का बंटवारा, संदेशखाली, राज्य सरकार के विरोधी इंकलाब या केंद्र के लिए मोदी जैसे प्रचार जमीन पर काम करना शुरू कर दिया, तो बीजेपी राज्य की-अनुमोदन संख्या वन पार्टी भी बन सकती है।
ग़रीबी पर है ग़रीबी: ग़रीबी पर है ग़रीबी: ग़रीबी पर है ग़रीबी: ग़रीबी पर है ग़रीबी का आरोप एलओजी कांग्रेस के नेता विवेक गुप्ता का दावा है कि इस बार एलओजी कांग्रेस का बहिष्कार किया गया है। उन्होंने पिछले चुनाव की समाप्ति को निर्धारित किया है। पार्टी को लग रहा है कि वह इस बार सामान्य चुनाव में राज्य में 30 सीट तक जीत हासिल कर सकती है। चतुर्थ का कहना है कि कोलकाता के अलावा उत्तर 24 परगना, सिलीगुड़ी, आसनसोल, दुर्गापुर, पुरुलिया और खड़गपुर में हिंदी भाषियों की इतनी आस है कि वे चुनाव में अलग-अलग भूमिका निभाते हैं।
2019 में सबसे ज्यादा वोट बीजेपी को मिले: बंगाल की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं, 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश के हिंदी भाषी लोगों का सबसे ज्यादा वोट बीजेपी की तरफ गया, लेकिन हिंदी भाषियों की अच्छी-खासी संख्या ममता समर्थक भी हैं।’ बंगालियों में सबसे ज्यादा हिंदी भाषी ही हैं। हिंदी भाषियों का प्रभाव इसी से पता चलता है कि कोलकाता के ज्यादातर बड़े उद्योगपति गैर-बैरल हैं। ये राजस्थान-बिहार जैसे राज्य से यहां तक कि यहां बसे हुए हैं। 2014 में केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद पार्टी ने बंगाल के हिंदी भाषियों में पथ निर्माण की शुरुआत की.