विश्व जनसंख्या दिवस: 100 साल बाद भारत में हिंदू हो जाएंगे अल्पसंख्यक? इस दावे के पीछे कितनी है सच्चाई, जानें क्या है सच

विश्व जनसंख्या दिवस: आज विश्व जनसंख्या दिवस या अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या दिवस मनाया जा रहा है। हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। भारत के संदर्भ में बात करे तो ‘जनसंख्या’ राजनीति का मुख्य मुद्दा रहा है। अक्सर विभिन्न प्रकार से इसे सियासत चमकाने में करते हैं। भारत एक हिंदू बहुसंख्यक आबादी वाला देश है। वहीं दूसरे स्थान पर मुस्लिम (Muslim in India) की आबादी है। हालाँकि आज़ादी के समय (15 अगस्त, 1947) देश में मुसलमानों की आबादी सिर्फ़ 3 से 4 करोड़ के आस-पास थी। वहीं पिछले 70 वर्षों में तेजी से बढ़ती हुई वर्तमान समय में इसकी जनसंख्या 25 से 30 करोड़ हो चुकी है। ऐसे में अक्सर कहा जाता है कि मुसलमानों की जनसंख्या इसी तरह बढ़ती रहेगी तो आने वाले 100 या 500 साल बाद यहां हिंदू अल्पसंख्यक और मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक हो जाएगी। तो विश्व जनसंख्या दिवस पर जानते हैं इस मामले में निर्यात की रायः-

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भारत की जनसंख्या वृहद के देशों में सबसे अधिक है। संयुक्त राष्ट्र (संयुक्त राष्ट्र, यूएन) ने पिछले साल भारत की जनसंख्या को लेकर एक रिपोर्ट दी थी कि अगले तीन दशक तक देश की जनसंख्या ज़्यादा और फिर इसमें गिरावट आने लगेगी।

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यूएन के अनुसार भारत की जनसंख्या 142.57 करोड़ है, जिसमें सबसे ज्यादा जनसंख्या मुस्लिमों की है। हिंदू महिलाओं की तुलना में मुस्लिम महिलाओं में अधिक बच्चे पैदा होते हैं। आंकड़े कई बार ऐसे दावे किए गए हैं कि जनसंख्या के मामले में भारत के मुसलमान घटकों से आगे निकल जाएंगे। हालांकि, एक्सपोर्ट्स की जिम्मेदारी तो ऐसा होना असंभव है। 100 साल क्या 1000 साल में भी ऐसा होने की कोई संभावना नहीं है।

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परिवार कल्याण कार्यक्रम की समीक्षा के लिए बनाई गई राष्ट्रीय समिति के पूर्व अध्यक्ष दलित कोठारी का कहना है कि अगली जनगणना तक मुसलमानों की जनसंख्या या तो कम होगी या फिर स्थिर रहेगी। वहीं कंक्रीट की आबादी में मामूली वृद्धि देखी जा सकती है। उनका अनुमान है कि 2170 तक यानी 146 साल तक अगर सिर्फ मुस्लिम बच्चे पैदा करें और हिंदू बिल्कुल न करें तो ऐसा भी नहीं है कि मुसलमानों की आबादी ज्यादा हो जाए। उन्होंने कहा कि ऐसा होना संभव नहीं है कि हिंदू इतने लंबे समय तक बच्चे पैदा न करें, लेकिन यह एक सरल गणना है कि मुसलमानों की आबादी को लेकर चले रहे ऐसे उपलब्धियों का कोई मतलब नहीं है।

अगली बार जनगणना कितनी होगी मुसलमानों की जनसंख्या? साल 2011 में पिछली बार जनगणना हुई थी और तब आबादी 79.08 फीसदी, मुसलमानों की 14.23 फीसदी, ईसाइयों की 2.30 फीसदी और सिखों की 1.72 फीसदी थी। आंकड़ों में बात करें तो 13 साल पहले हिंदू 96.62 करोड़, मुस्लिम 17.22 करोड़, ईसाई 2.78 करोड़ और सिख 2.08 करोड़ थे। इसका मतलब था कि समग्र और मुसलमानों की जनसंख्या में 79.40 करोड़ का अंतर था। नायडू कोठारी ने वैज्ञानिक विश्लेष्ण का हवाला देते हुए कहा कि अगली जनगणना तक जनसंख्या बढ़कर 80.3 प्रतिशत हो जाएगी, जबकि मुस्लिम आबादी या तो घटेगी या फिर स्थिर रहेगी।

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मुसलमानों के रुझान से आगे निकलने की कितनी संभावना? पूर्व चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने अपनी किताब ‘द पॉपुलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया’ में कहा है कि हिंदुस्तान में कभी भी मुस्लिम आबादी से ज्यादा नहीं हो सकती। पुस्तक में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दिनेश सिंह और प्रोफेसर अजय कुमार के गणितीय मॉडल के आधार प्रस्तुत किए गए हैं। हर दस साल में जनगणना होती है और यह मिसअली से 2021 में होनी थी, लेकिन कई कारणों से यह नहीं हो पाया। 2021 में ही ये मॉडल पेश किए गए थे और उसी साल एस. वाई. कुरैशी की किताब में इसे शामिल किया गया।

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इस सदी के अंत तक क्या ज्यादा होंगे मुसलमान? जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर पीएम कुलकर्णी ने सच्चर समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि प्रजनन दर ज्यादा होने के बाद भी इस सदी के अंत तक मुसलमानों की जनसंख्या 18-20 फीसदी होगी। तक ही पहुंच हो सकती है। न्यू रिसर्च के अनुसार भारत में मुस्लिम महिलाओं से ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं। हालाँकि, 2-15 में उनकी प्रजनन दर 2.6 हो गई है, फिर भी यह देश के बाकी धर्मों की तुलना में सबसे ज्यादा है।

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दोनों धर्मों के बीच प्रजनन दर का अंतर 1.1 से 0.5 पहुंचा

वर्ष 1992 में एक मुस्लिम महिला ने 4.4 बच्चे पैदा किए थे, जबकि 2015 में यह आंकड़ा 2.6 हो गया है। मूल में यह 3.3 से भाग 2.1 रह गया। 23 वर्षों में दोनों धर्मों के बीच प्रजनन दर का अंतर 1.1 से 0.5 हो गया। पीएम कुलकर्णी ने कहा कि सच्चर समिति की रिपोर्ट के अनुसार 1000 या 100 साल में भी मुसलमानों की आबादी बढ़ने की संभावना नहीं है।

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1951 में 30.36 करोड़ हिंदू और 3.58 करोड़ मुस्लिम थे

पोलिनोमिनल ग्रोथ मॉडल के अनुसार 1951 में 30.36 करोड़ हिंदू थे और 2021 तक 115.9 करोड़ होने का अनुमान है। वहीं, 1951 में मुसलमानों की जनसंख्या 3.58 करोड़ थी, जिसके 2021 में 21.3 करोड़ होने का अनुमान लगाया गया था। एक्सपोनेंशियल मॉडल में मुसलमानों की जनसंख्या 120.6 करोड़ और मुसलमानों की 22.6 करोड़ होने का अनुमान लगाया गया था। कुरैशी ने किताब में कहा है कि दोनों मॉडल ही ऐसा नहीं दिखाते हैं कि कभी मुस्लिम लोकप्रियता ज्यादा हो जाएगी या फिर उसके अनुरूप हो सकती है।

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