सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं को पीरियड लीव देने की नीति बनाने के लिए केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश देने की मांग वाली याचिका सोमवार (8 जून) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। को सुना हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड लीव की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। हालांकि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (महिला एवं बाल विकास मंत्रालय) ने इस संबंध में एक आदर्श नीति तय करने के लिए सभी पक्षों और राज्यों के साथ बातचीत करने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (सीजेआई चंद्रचूड़) ने फैसला देते हुए कहा कि हम पैगंबर को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में सचिव और एएसजी ऐश्वर्या भाटी के खुलासे अपनी बात रखने की छूट देते हैं।
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याचिका पर सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि यह छुट्टी ज्यादा महिलाओं को वर्कफोर्स का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित करती है। इस तरह के अवकाश को जरूरी बनाने से महिला वर्कफोर्स से दूर रहना। हम ऐसा नहीं चाहते हैं, महिलाओं की सुरक्षा के लिए हम जो प्रयास करते हैं, वह उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है। यह वास्तव में सरकार की नीति का पहलू है और इस पर अदालतों को गौरव नहीं करना चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम पैगंबर को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में सचिव और एएसजी ऐश्वर्या भाटी की विशेषताओं के साथ अपनी बात रखने की छूट देते हैं। हम सचिव से गुजराती करते हैं कि वे नीतिगत स्तर पर मामले को देखें और सभी शर्तों से बातचीत करने के बाद फैसला लें और देखें कि क्या एक आदर्श नीति बनाई जा सकती है।
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हस्तक्षेप करने से किया गया
मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि पैगंबर का कहना है कि मई 2023 में केंद्र को एक प्रतिवाद प्रस्तुत किया गया था। चूंकि मुद्दे राज्य की नीति के सभी उद्देश्यों को साकार करते हैं, इसलिए इस न्यायालय के लिए हमारे पिछले आदेश के अनुसार हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।
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मासिक धर्म में छुट्टी के लिए नियम बनाने की मांग
बता दें कि याचिका में सुप्रीम कोर्ट से राज्य महिलाओं को छुट्टी की समस्या के लिए नियम बनाने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई थी। इस याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 को प्रभावी ढंग से लागू करने के निर्देश देने की मांग सर्वोच्च न्यायालय से की गई है। इस जनहित याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 को प्रभावी तौर पर लागू करने के निर्देश सरकार को देने की गुहार अदालत से लगाई गई है। याचिका में महिलाओं और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म से संबंधित दर्द अवकाश दिए जाने की मांग की गई थी।
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बिहार में पाएं विशेष मासिक धर्म दर्द अवकाश
वकील शैलेन्द्रमणि त्रिपाठी की इस याचिका में कहा गया है कि मातृत्व लाभ अधिनियम को लागू करने के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति भी निश्चित रूप से बिहार में वर्तमान दौर में ही एकमात्र राज्य है, जो 1992 की नीति के तहत विशेष मासिक धर्म दर्द अवकाश प्रदान करता है।
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