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  • एमपी हाईकोर्ट ने दिया धार कलेक्टर सहित दो अधिकारियों के खिलाफ गिरफ्तार वारंट जारी करने का आदेश

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ। फाइल फोटो

    HighLights

    मिथुन चौहान ग्राम पंचायत नालछा धार में ग्राम रोजगार सहायक के पद पर पदस्थ था।स्वास्थ खराब होने के कारण मिथुन चौहान एक दिन कार्य पर उपस्थित नहीं हो सका।एक दिन की अनुपस्थिति को कदाचरण बताते मिथुन को पद से हटा दिया गया था।

    इंदौर (MP High Court)। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने धार जिले के कलेक्टर प्रियांक मिश्र और जिला पंचायत के मुख्य तत्कालीन कार्यपालन अधिकारी शृंगार श्रीवास्तव के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने का आदेश दिया है। अदालत के आदेश का पालन नहीं करने पर यह आदेश जारी किया गया है।

    इस मामले में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रसन्ना भटनागर ने बताया कि याचिकाकर्ता मिथुन चौहान ग्राम पंचायत नालछा जिला धार में ग्राम रोजगार सहायक के पद पर पदस्थ था। 25 फरवरी 2017 को स्वास्थ खराब होने के कारण वह एक दिन कार्य पर उपस्थित नहीं हो सका। एक दिन की अनुपस्थिति को कदाचरण बताते हुए, बिना जांच किए और बिना सुनवाई का अवसर दिए उसे हटा दिया गया।

    हाईकोर्ट में लगाई थी रिट याचिका

    उक्त आदेश को चुनौती देते हुए ग्राम रोजगार सहायक ने अपील प्रस्तुत की, लेकिन अपील भी निरस्त कर दी गई। जिसके बाद उसने 2019 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में रिट याचिका प्रस्तुत की। इसके बाद हाईकोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए 22 अगस्त 2023 को उसकी सेवा समाप्ति के आदेश को निरस्त कर दिया गया था। इसके साथ ही यह आदेश भी दिया गया कि ग्राम रोजगार सहायक को 50 प्रतिशत पिछले वेतन सहित वापस नौकरी पर रखा जाए।

    हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया

    इस आदेश को चुनौती देते हुए शासन के द्वारा अपील प्रस्तुत की गई, लेकिन 3 जुलाई 2024 को अपील भी निरस्त हो गई। अपील निरस्त होने के बाद भी हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया गया।याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका प्रस्तुत की जिसमें दिनांक 20 सितंबर 2024 को शासन को यह निर्देश दिए कि वह आदेश का पालन करें।

    इसके साथ ही 4 अक्टूबर 2024 को न्यायालय के समक्ष उपस्थित रहें। इसके बाद भी आदेश का पालन नहीं किया गया और न ही उक्त दोनों अधिकारी हाईकोर्ट में उपस्थित रहे। इसलिए न्यायालय द्वारा कलेक्टर और मुख्य कार्यपालन अधिकारी के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए गए हैं।

  • हाई कोर्ट ने पलटा सत्र न्यायालय का फैसला, पत्नी को जलाने वाले की उम्र कैद की सजा रोकी

    महिला की बेटी के धारा-164 के बयान घटना के एक माह बाद दर्ज किए गए थे।

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    पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अंगूठे में नहीं था स्याही का निशान। सत्र न्यायालय पहुंचने के बाद उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बयान और मृत्यु के बीच नौ घंटों का अंतर भी था।

    नईदुनिया, जबलपुर (MP High Court)। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल व न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह की युगलपीठ ने मृत्युपूर्व कथन को संदिग्ध पाते हुए सत्र न्यायालय द्वारा पारित उम्रकैद के फैसले को निरस्त कर दिया। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि संदिग्ध मृत्युपूर्व कथन सजा का आधार नहीं हो सकता।

    बयान और मृत्यु के बीच सिर्फ नौ घंटों का अंतर

    हाई कोर्ट ने पाया कि मृत्युपूर्व कथन में मृतिका के अंगूठा का निशान लगा हुआ था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के दौरान मृतिका के अंगूठे में स्याही नहीं थी। बयान और मृत्यु के बीच सिर्फ नौ घंटों का अंतर था। अपीलकर्ता सागर निवासी पप्पू उर्फ माखन साहू व उसके मित्र बल्लू उर्फ बलराम की ओर से हाई कोर्ट में पक्ष रखा गया।

    पत्नी को जिन्दा जलाने का आरोप लगा था

    पप्पू पर मित्र बल्लू के साथ मिलकर पत्नी को जिन्दा जलाने का आरोप लगा था। जिसे लेकर पुलिस ने अपराध कायम किया और मामला सत्र न्यायालय पहुंचने के बाद उम्रकैद की सजा सुना दी गई।

    क्या था अभियोजन का आरोप

    अभियोजन के अनुसार पप्पू ने शराब पीने के लिए अपनी पत्नी से रूपये मांगे थे। पत्नी द्वारा मना करने पर उसने अपने दोस्त बल्लू के साथ मिलकर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी। महिला को 90 प्रतिशत जलने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

    अपील में क्या तर्क दिया

    सत्र न्यायालय के फैसले को चुनौती वाली हाई कोर्ट में दायर अपील में तर्क दिया गया कि मृत्युपूर्व बयान में महिला के अंगूठे के निशान की बात दर्ज हैं। किंतु वास्तविकता यह थी कि महिला के हाथ पूरे तरह जले हुए थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार महिला के हाथ में स्याही का निशान नहीं था।

    हाई कोर्ट ने मृत्युपूर्व बयान को संदिग्ध माना

    महिला की बेटी के धारा-164 के बयान घटना के एक माह बाद दर्ज किए गए थे। इस दौरान बेटी उसके ससुराल पक्ष के पास थी। बहरहाल, हाई कोर्ट ने मृत्युपूर्व बयान को संदिग्ध मानते हुए अपीलकर्ताओं को दोषमुक्त करने का आदेश पारित कर दिया।