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  • Breast Cancer: अब कम उम्र की महिलाएं भी हो रही ब्रेस्ट कैंसर की शिकार, पहले यह 40 से 50 की उम्र में होता था

    कम उम्र की दो, 30 से 50 साल की 12-15 प्रतिशत महिलाएं शिकार। सांकेतिक चित्र।

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    जीआरएमसी के कैंसर रोग विभाग में इलाज के लिए पहुंच रही हैं महिलाएं। इलाज के लिए पहुंचे 1000 मरीजों की जांच के बाद यह आंकड़े सामने आए। डॉक्टर कहते हैं कि 100 में से एक ब्रेस्ट कैंसर का मरीज पुरुष हो सकता है।

    अनूप भार्गव.नईदुनिया ग्वालियर। 20 से 25 साल उम्र की दो प्रतिशत महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर की चपेट में आ रही हैं। जबकि 12 से 15 प्रतिशत महिलाएं 30 से 50 साल उम्र की हैं। गजराराजा मेडिकल कॉलेज के कैंसर रोग विभाग की ओपीडी में इलाज के लिए पहुंचे 1000 मरीजों की जांच के बाद यह आंकड़े सामने आए हैं।

    हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि कैंसर को लेकर महिलाओं में बढ़ी जागरूकता के कारण वह समय से इलाज के लिए पहुंच रही हैं, क्योंकि कैंसर के सफल इलाज का एकमात्र सूत्र जल्द पहचान है। अक्टूबर के इस महीने को पिंकटाबर यानी गुलाबी अक्टूबर कहा जाता है।

    पुरुष भी हो सकते हैं शिकार

    यह महीना दुनिया भर में ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए समर्पित है। डॉक्टर कहते हैं कि 100 में से एक ब्रेस्ट कैंसर का मरीज पुरुष हो सकता है। चिन्ता की बात यह है कि पहले यह बीमारी अधिकांशत: 40-50 वर्ष आयु से अधिक उम्र की महिलाओं में होती थी।

    कम उम्र की महिलाओं को भी ले रहा चपेट में

    अब यह कम उम्र की महिलाओं को भी अपनी चपेट में ले रही है। कैंसर रोग विभाग में इलाज करवा रहीं महिलाओं में कई ऐसी हैं जिनकी उम्र 20-25 वर्ष है। कैंसर विशेषज्ञ डा. संजय चंदेल का कहना है कि समय पर बीमारी की पहचान जीवन बचा सकती है।

    स्तन कैंसर होने के कारण और इसके बचाव

    यह हैं कारक उम्र के साथ स्तन कैंसर का खतरा बढ़ता जाता है। 50 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को इसका ज्यादा खतरा होता है। स्तन कैंसर का पारिवारिक इतिहास, विशेष रूप से मां या बहन जैसे करीबी रिश्तेदारों में इसका होना आपके जोखिम को बढ़ा सकता है। जिन महिलाओं को मासिक धर्म जल्दी शुरू हो जाता है, देर से मेनोपाज होता है या जिनके कभी बच्चे नहीं हुए, उन्हें भी इसका ज्यादा खतरा होता है। लाइफस्टाइल मोटापा, और शारीरिक गतिविधि की कमी, स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाने में योगदान दे सकते हैं। ऐसे करें बचाव अपने स्तन में होने वाले बदलावों जैसे रंग, आकार, आकृति आदि में बदलाव का ध्यान रखें। अगर आपको कैसा भी कोई बदलाव दिखाई दे, तो तुरंत डॉक्टर से पूछें। अगर आपकी उम्र 40 साल से ज्यादा है, तो आपको वार्षिक मैमोग्राम कराना चाहिए। ब्रेस्ट कैंसर से बचाव के लिए फलों, सब्जियों और साबुत अनाज से भरपूर संतुलित आहार को डाइट में लें। मोटापा स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाता है। ऐसे में अपना वजन कंट्रोल में रखने के लिए हेल्दी डाइट और एक्सरसाइज को लाइफस्टाइल में शामिल करें।

  • 111 सैंपलों की जांच में 18 नए डेंगू पाजिटिव मरीज मिले

    111 सैंपलों की जांच में 18 नए डेंगू पाजिटिव मरीज मिले। सांकेतिक चित्र।

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    18 में से 13 पाजिटिव मरीज मुरार क्षेत्र, छह दूसरे जिले केडेंगू की रफ्तार कम नहीं हो रही, एक युवक की जान भी गईसंक्रमितों में सबसे ज्यादा बच्चे हैं, इनकी संख्या 200 से अधिक हो गई है

    नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। डेंगू पाजिटिव मरीजों के मिलने का सिलसिला लगातार जारी है। रविवार को जीआरएमसी और जिला अस्पताल की लैब से आई 111 सैंपल की जांच में 18 नए मरीजों की पुष्टि हुई है। इसके साथ ही छह दूसरे जिले के हैं। इन मरीजों की जानकारी संबंधित सीएमएचओ कार्यालय को दे दी गई है। स्वास्थ्य और नगर निगम की टीम डेंगू की रोकथाम के दावे कर रही हैं, लेकिन डेंगू की रफ्तार कम नहीं हो रही। अब तो डेंगू ने एक युवक की जान तक ले ली है।

    इसके साथ ही अन्य मरीज विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। अब तक आठ हजार 431 रोगियों की डेंगू जांच में कुल 545 पाजिटिव केस मिल चुके हैं। इनमें से एक की मौत हुई है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा चार लाख सात हजार 571 घरों का सर्वे कर 12 हजार 734 घरों में लार्वा को नष्ट कराने का दावा कर रही है, लेकिन मरीजों की संख्या में कमी अब तक देखने को नहीं मिली है। संक्रमितों में सबसे ज्यादा बच्चे हैं। इनकी संख्या 200 से अधिक हो गई है।

    सुबह साढ़े छह से आठ बजे के बीच नहीं हो रही फागिंग

    नगर निगम को न तो फागिंग का तरीका पता है न ही इसके लिए उसके पास उपयुक्त समय। डेंगू की रोकथाम के लिए सबसे उपयुक्त समय सुबह साढ़े छह से आठ बजे के बीच का है, मगर इस समय पर कहीं भी फागिंग नहीं कराई जा रही। बताते हैं कि फागिंग के समय वाहन की रफ्तार भी 20 किमी प्रति घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है।

    बच्चों के ज्यादा पाजिटिव निकलने पर स्कूलों को निर्देश जारी

    डेंगू मरीजों में बच्चों के सबसे ज्यादा संक्रमित निकलने पर मुख्य चिकित्सा व स्वास्थ्य अधिकारी ने शासकीय और निजी विद्यालयों को निर्देश जारी किए हैं कि वह बच्चों को फुल पेंट-शर्ट पहनकर स्कूल आने को कहें, ताकि उनका बचाव किया जा सके। साथ ही उन्होंने अभिभावकों से भी अपील की है कि बच्चों को फुल कपड़े पहनाएं, क्योंकि डेंगू का मच्छर दिन में काटता है और वह ज्यादा ऊंचाई तक नहीं उड़ पाता।

  • नवजात के स्वजन बोले – हमारे साथ हुआ वह किसी के साथ न हो, दोषियों पर हो सख्त कार्रवाई

    नवजात के स्‍वजनों ने की दोषियों पर सख्‍त कार्रवाई की मांग। प्रतीकात्‍मक चित्र।

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    11 दिन की नवजात की मौत का मामला, लापरवाही की वजह से गई बच्ची की जानजीआरएमसी अधिष्ठाता बोले रिकार्ड का परीक्षण करने के बाद तय होगी दोषियों पर कार्रवाईमुरैना और जिला अस्पताल से जीआरएमसी पहुंचा रिकार्ड

    नईदुनिया प्रतनिधि, ग्वालियर। 11 दिन की बच्ची को सरकारी अस्पतालों की दहलीज पर पहुंचकर भी इलाज नहीं मिलने के कारण हुई मौत के मामले में बच्ची के स्वजनों का कहना है कि हमारे साथ जो हुआ वह किसी के साथ न हो इसलिए दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। इसके लिए अफसरों से शिकायत करेंगे।

    इधर बच्ची की मौत के मामले में केआरएच के पीडियाट्रिक विभाग और सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग द्वारा बच्ची के इलाज को लेकर की गई लापरवाही के मामले में जीआरएमसी डीन डा. आरकेएस धाकड़ द्वारा की जा रही जांच में मुरैना और जिला अस्पताल मुरार से रिकार्ड जीआरएमसी तक पहुंच गया है। अब रिकार्ड का परीक्षण का दोषियों पर कार्रवाई करने का दावा जीआरएमसी प्रबंधन कर रहा है।

    जीआएमसी डीन डा. धाकड़ के निजी कार्य से बाहर जाने की वजह से रिकार्ड का परीक्षण नहीं हो सका, इस कारण गुरुवार को दोषी चिन्हित नहीं हो सके। अब डीन के लौटने के बाद दोषियों पर कार्रवाई तय होगी। इसके साथ ही केआरएच के पीडियाट्रिक एसएनसीयू में भर्ती किए जा रहे पीडियाट्रिक सर्जरी के बच्चों को अब सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के पीडियाट्रिक सर्जरी वार्ड में ही भर्ती किया जाएगा। पीडियाट्रिक चिकित्सक की आवश्यकता पड़ने पर चिकित्सक वहां पहुंचकर बच्चे का परीक्षण करेंगे। इस तरह के निर्देश डीन डा.धाकड़ ने दिए हैं। यह व्यवस्था नवजात बच्ची की मौत के बाद की गई।

    केआरएच में बच्ची को आक्सीजन सपोर्ट तक नहीं मिला, इसलिए गई जान

    बच्ची के ताऊ बंटी सखवार ने बताया कि जिला अस्पताल से जब हम बच्ची को लेकर केअारएच के पीडियाट्रिक एसएनसीयू पहुंचे, उस समय उसे अाक्सीजन की जरुरत थी। हमने वहां तैनात डाक्टरों से बच्ची को आक्सीजन सपोर्ट पर रखने की गुहार लगाई, लेकिन डाक्टरों ने गार्ड को बुलाकर हमें बाहर निकलवा दिया। जिससे बच्ची की तबीयत और ज्यादा बिगड़ गई अगर वहां समय रहते उसे आक्सीजन सपोर्ट मिल जाता तो उसकी जान बच सकती थी। यहां से परेशान होकर हम वापस रात में जिला अस्पताल पहुंचे, लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही बच्ची ने दमतोड़ दिया था।

    मुरैना और जिला अस्पताल से रिकार्ड तलब किए थे वह मिल गए हैं। अभी बाहर हूं लौटते ही रिकार्ड का परीक्षण कर दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।

    डा.आरकेएस धाकड़, डीन, जीआरएमसी