राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार को राष्ट्रीय राजधानी में सुप्रीम कोर्ट की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में न्यायालय के लिए नए ध्वज और प्रतीक चिन्ह का अनावरण किया। राष्ट्रपति मुर्मू ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित जिला न्यायपालिका के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र में भाग लिया।
आधिकारिक विज्ञप्ति में बताया गया कि उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका के समक्ष कई चुनौतियां हैं, जिनके समाधान के लिए सभी हितधारकों द्वारा समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होगी। समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि अपनी स्थापना के बाद से ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की न्यायिक प्रणाली के सजग प्रहरी के रूप में अमूल्य योगदान दिया है।
उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था को सर्वोच्च न्यायालय के कारण बहुत सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। उन्होंने भारतीय न्यायपालिका से जुड़े सभी वर्तमान और पूर्व लोगों के योगदान की सराहना की। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने पर सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिनसे लोगों का हमारी न्यायिक व्यवस्था के प्रति विश्वास और लगाव बढ़ा है।
राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय के प्रति आस्था और श्रद्धा की भावना हमारी परंपरा का हिस्सा रही है। उन्होंने पिछले अवसर पर अपने संबोधन का जिक्र करते हुए दोहराया कि लोग देश के हर न्यायाधीश को भगवान मानते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि हाल के वर्षों में जिला स्तर पर न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे, सुविधाओं, प्रशिक्षण और मानव संसाधनों की उपलब्धता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, लेकिन इन सभी क्षेत्रों में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्होंने विश्वास जताया कि सुधार के सभी आयामों पर तेजी से प्रगति जारी रहेगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि लंबित मामलों और लंबित मामलों की संख्या न्यायपालिका के समक्ष बड़ी चुनौतियां हैं। उन्होंने 32 वर्षों से अधिक समय तक लंबित मामलों के गंभीर मुद्दे पर विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विशेष लोक अदालत सप्ताह जैसे कार्यक्रमों का अधिक बार आयोजन किया जाना चाहिए और कहा कि इससे लंबित मामलों से निपटने में मदद मिलेगी।
राष्ट्रपति मुर्मू ने इस बात पर भी प्रसन्नता व्यक्त की कि इस सम्मेलन के एक सत्र में केस मैनेजमेंट से जुड़े कई पहलुओं पर चर्चा की गई। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इन चर्चाओं से व्यावहारिक परिणाम सामने आएंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान में पंचायतों और नगर पालिकाओं के माध्यम से स्थानीय स्तर पर विधायी और कार्यकारी निकायों की शक्ति और जिम्मेदारियों का प्रावधान है।
उन्होंने पूछा कि क्या हम स्थानीय स्तर पर इनके समतुल्य न्याय प्रणाली के बारे में सोच सकते हैं और कहा कि स्थानीय भाषा और स्थानीय परिस्थितियों में न्याय प्रदान करने की व्यवस्था करने से न्याय को हर किसी के दरवाजे तक पहुंचाने के आदर्श को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में जब अदालती फैसले एक पीढ़ी बीत जाने के बाद आते हैं, तो आम आदमी को लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता की कमी है। उन्होंने कहा कि यह हमारे सामाजिक जीवन का एक दुखद पहलू है कि कुछ मामलों में साधन संपन्न लोग अपराध करने के बाद भी निर्भय और खुलेआम घूमते रहते हैं और उनके अपराधों से पीड़ित लोग इस डर में जीते हैं, मानो उन बेचारों ने कोई अपराध किया हो।
राष्ट्रपति ने इस बात पर भी प्रसन्नता व्यक्त की कि सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रावधान को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने का आदेश दिया है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि इसके तहत पहली बार आरोपी बनाए गए लोगों और निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि का एक तिहाई हिस्सा काट चुके लोगों को जमानत पर रिहा करने का प्रावधान है।
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि आपराधिक न्याय की नई प्रणाली को इस तत्परता से लागू करके हमारी न्यायपालिका न्याय के एक नए युग की शुरुआत करेगी।