चुनाव बाद हिंसा: गृह मंत्रालय ने हाईकोर्ट से कहा, बंगाल में केंद्रीय बलों की तैनाती बढ़ाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं | भारत समाचार

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय को सूचित किया कि राज्य में चुनाव बाद हिंसा के आरोपों के मद्देनजर यदि स्थिति की मांग हुई तो पश्चिम बंगाल में केंद्रीय बलों की तैनाती बढ़ाए जाने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है।

अदालत ने केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए चुनाव बाद हिंसा के आरोपों के बाद की स्थिति का आकलन करें और 21 जून को सुनवाई की अगली तारीख पर इनसे संबंधित सभी प्रासंगिक तथ्यों का खुलासा करें।

सुनवाई के दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक चक्रवर्ती ने अदालत के समक्ष कहा कि यदि स्थिति की मांग हो तो राज्य में केंद्रीय बलों की तैनाती बढ़ाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

दो जनहित याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं में से एक, विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी के वकील ने प्रस्तुत किया कि पश्चिम बंगाल सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 12 जून तक कुल 107 प्राथमिकी दर्ज की गई हैं और इनमें से 18 चुनाव के बाद की हिंसा से संबंधित नहीं हैं, दावा किया कि इस प्रकार यह स्वीकार करता है कि राज्य में वास्तव में चुनाव के बाद हिंसा हो रही थी।

पश्चिम बंगाल में सात चरणों में हुए लोकसभा चुनाव 1 जून को संपन्न हुए और नतीजे 4 जून को घोषित किए गए।

न्यायमूर्ति हरीश टंडन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने निर्देश दिया कि मामले को 21 जून को फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए, जिस तारीख तक केंद्रीय बलों को बंगाल में बने रहने का निर्देश अदालत द्वारा पहले ही दिया जा चुका है।

अधिकारी और वकील प्रियंका टिबरेवाल ने अपनी अलग-अलग जनहित याचिकाओं में आरोप लगाया था कि लोकसभा चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने के बाद एक विशेष राजनीतिक दल के लोगों पर अत्याचार हो रहे हैं।

खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य भी शामिल थे, ने कहा कि उनकी मुख्य चिंता नागरिकों की सुरक्षा है, क्योंकि जनहित याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं ने गंभीर आरोप लगाए हैं।

राज्य की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने कहा कि राज्य सरकार कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में अपना काम कर रही है।

याचिकाकर्ता-वकील प्रियंका टिबरेवाल ने दावा किया कि उनके पास 250 लोगों की सूची है, जिन्हें उनकी राजनीतिक मान्यताओं के कारण उनके घरों से निकाल दिया गया था और वे कोलकाता की एक धर्मशाला में रह रहे थे।

उन्होंने अगली सुनवाई पर अदालत के समक्ष इस संबंध में एक पूरक हलफनामा प्रस्तुत करने की मांग की।