कस्तूरबा ग्राम में छात्राओं को चरखे के माध्यम से स्वालंबन व स्वरोजगार की सीख भी दी जाती है।
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कस्तूरबा ग्राम में छात्राएं आंगनबाड़ी से आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। छात्राओं को किताबी ज्ञान के अलावा कृषि कार्य की बारीकी भी सिखाई जाती है। यहां बा के घर’ में निराश्रित महिलाओं और युवतियों को आसरा भी मिल रहा है।
उदय प्रताप सिंह, नईदुनिया इंदौर(Gandhi Jayanti 2024)। होलकर राजवंश से आजादी के अहम मौकों का गवाह रहा इंदौर पिछले 79 साल से महात्मा गांधी के सिद्धांतों को थामे हुए है। इस शहर के युवा आज भी बापू की बुनियादी शाला में कपास के सूत को तो बुन ही रहे हैं, कंप्यूटर, मोबाइल व इंटरनेट के माध्यम से एक नई कहानी भी लिख रहे हैं।
यह बदलाव हो रहा है इंदौर में रालामंडल के समीप कस्तूरबा ग्राम में। 1944 में महात्मा गांधी ने अपनी पत्नी कस्तूरबा की याद में महिला, बालिका व बच्चों के विकास के लिए ट्रस्ट की स्थापना की थी। 1945 में इंदौर में यह केंद्र शुरू हुआ और तब से आज तक यह केंद्र गांधी के सिद्धांतों को न सिर्फ भावी पीढ़ी को दे रहा है, बल्कि उसे विज्ञान व दुनिया के नए आयामों से रूबरू भी करवा रहा है।
यहां बापू की बुनियादी शाला में ग्रामीण परिवेश में रहने वाली छात्राएं आंगनबाड़ी से आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। छात्राओं को किताबी ज्ञान के अलावा कृषि कार्य की बारीकियां भी कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से बताई जा रही हैं। गोशाला में पशुपालन भी सिखाया जाता है। वहीं ‘बा के घर’ में निराश्रित महिलाओं व युवतियों को आसरा भी मिल रहा है। यहां के अमृत बाग में छात्राएं आर्गेनिक फार्मिंग भी सीख रही हैं।
400 से ज्यादा विद्यार्थियों को मिल रही शिक्षा
कस्तूरबा ग्राम में संचालित कन्या विद्या मंदिर में आठवीं से 12वीं तक कक्षाओं में 100 से अधिक बालिकाएं अध्ययनरत हैं। वहीं स्वशासी कन्या महाविद्यालय कस्तूरबा ग्राम रूरल इंस्टीट्यूट में 300 छात्राएं बीए, बीएससी, बीकाम, होम साइंस के स्नातक कोर्स व ग्रामीण विकास व प्रसार, समाज शास्त्र के स्नातकोतर कोर्स में अध्ययनरत हैं। संस्था में पढ़ी कई छात्राएं उच्च पदों पर पहुंची हैं।