जाम नदी पर गोटमार मेले में पत्थर फेंकते पांढुर्णा और सावरगांव के लोग।
HighLights
मेला प्रतिवर्ष पोला पर्व के दूसरे दिन खेला जाता है। पांढुर्णा की पहचान गोटमार मेले के बिना अधूरी है। एक दिन पहले 2 सितंबर की शाम से शुरू हो गया था।
नईदुनिया, छिंदवाड़ा (Pandhurna News)। देश विदेश में पहचान बना चुका गोटमार मेला मंगलवार को भी पांढुर्णा में जाम नदी के किनारे खेला गया। गोटमार मेले में दोनों गांव के लोगों ने एक-दूसरे पर पत्थर बरसाए।सुबह 10 बजे से शुरू हुए मेले में पत्थर लगने से 320 लोग घायल हुए हैं। 4 की हालत गंभीर है। मेले में 4 स्वास्थ्य शिविर भी लगाए गए। 11 लोगों का एक्सरे किया गया। इनमें 3 लोगों के हाथ-पैर की हड्डी टूटी मिली। सभी का सिविल अस्पताल में इलाज किया जा रहा है।
लोग एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार करते रहे
जाम नदी की पुलिया पर पांढुर्णा और सावरगांव के लोग एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार करते रहे। एक युवक पत्थर से बचने के लिए क्रिकेट किट पहनकर पहुंचा। ये खेल शाम तक चला। मेले में 6 जिलों का पुलिस बल तैनात रहा।बीते 300 सालों से परंपरागत रूप से मेले आयोजन हो रहा है। इसमें सांवरगांव और पांढुर्णा पक्ष के लोग एक दूसरे पर पत्थरबाजी करते हैं।
खेले जाने वाले इस खूनी खेल को लेकर कई किवदंतियां हैं
विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला, हर साल भाद्र पक्ष की अमावस्या की तिथि पर आयोजित होता है। पांढुर्णा के जाम नदी के दोनों ओर से लोगों के बीच खेले जाने वाले इस खूनी खेल को लेकर कई किवदंतियां हैं, इसके पीछे एक प्रेम कहानी भी जुड़ी हुई है।
…तो उन्होंने इसे अपनी प्रतिष्ठा पर आघात समझ लिया
बताया जाता है कि पांढुर्णा का लड़का और नदी के दूसरी तरफ सावरगांव की लड़की से प्यार करता था, दोनों के इस प्रेम प्रसंग को विवाह बंधन में बदलने के लिए कन्या पक्ष के लोग राजी नहीं हुए तो युवक ने अपनी प्रेमिका को जीवनसाथी बनाने के लिए सावरगांव से भगाकर पांढुर्णा लाने की कोशिश की, लेकिन रास्ते में स्थित जाम नदी को पार करते समय जब बात सावरगांव वालों को मालूम हुई तो उन्होंने इसे अपनी प्रतिष्ठा पर आघात समझ लिया। इसके बाद सावरगांव वालों ने लड़के पर पत्थरों की बौछार कर दी, जैसे ही लड़के के पक्ष वालों को यह खबर लगी तो उन्होंने भी लड़के के बचाव के लिए पत्थरों की बौछार शुरू कर दी।
दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच हो गई
पांढुर्णा पक्ष एवं सावरगांव पक्ष के बीच इस पत्थरों की बौछारों से इन दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच हो गई थी। इन दोनों प्रेमियों के शव को उठाकर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा गया और पूजा अर्चन करने के बाद अंतिम संस्कार किया गया था। इसी घटना की याद में मां चंडीका की पूजा अर्चना कर गोटमार मेले को मनाया जाता है और कई वर्षों से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है।
पेड़ पर लगे झंडे को पाने वाली पक्ष की होती है जीत
मेले के दौरान मेले की आराध्य देवी मां चंडिका के पूजन के उपरांत जाम नदी के बीचों-बीच पलाश का पेड़ और झंडा गाड़ा जाता है और फिर एक और से पांढुर्णा के लोग तथा दूसरी और से सावरगावं के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं, जिसमें कई लोग इस पत्थरबाजी में घायल होते हैं। अंत में जो झंडा प्राप्त करने में सफल रहता है उन्हें विजेता घोषित किया जाता है।