महिला की बेटी के धारा-164 के बयान घटना के एक माह बाद दर्ज किए गए थे।
HighLights
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अंगूठे में नहीं था स्याही का निशान। सत्र न्यायालय पहुंचने के बाद उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बयान और मृत्यु के बीच नौ घंटों का अंतर भी था।
नईदुनिया, जबलपुर (MP High Court)। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल व न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह की युगलपीठ ने मृत्युपूर्व कथन को संदिग्ध पाते हुए सत्र न्यायालय द्वारा पारित उम्रकैद के फैसले को निरस्त कर दिया। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि संदिग्ध मृत्युपूर्व कथन सजा का आधार नहीं हो सकता।
बयान और मृत्यु के बीच सिर्फ नौ घंटों का अंतर
हाई कोर्ट ने पाया कि मृत्युपूर्व कथन में मृतिका के अंगूठा का निशान लगा हुआ था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के दौरान मृतिका के अंगूठे में स्याही नहीं थी। बयान और मृत्यु के बीच सिर्फ नौ घंटों का अंतर था। अपीलकर्ता सागर निवासी पप्पू उर्फ माखन साहू व उसके मित्र बल्लू उर्फ बलराम की ओर से हाई कोर्ट में पक्ष रखा गया।
पत्नी को जिन्दा जलाने का आरोप लगा था
पप्पू पर मित्र बल्लू के साथ मिलकर पत्नी को जिन्दा जलाने का आरोप लगा था। जिसे लेकर पुलिस ने अपराध कायम किया और मामला सत्र न्यायालय पहुंचने के बाद उम्रकैद की सजा सुना दी गई।
क्या था अभियोजन का आरोप
अभियोजन के अनुसार पप्पू ने शराब पीने के लिए अपनी पत्नी से रूपये मांगे थे। पत्नी द्वारा मना करने पर उसने अपने दोस्त बल्लू के साथ मिलकर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी। महिला को 90 प्रतिशत जलने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अपील में क्या तर्क दिया
सत्र न्यायालय के फैसले को चुनौती वाली हाई कोर्ट में दायर अपील में तर्क दिया गया कि मृत्युपूर्व बयान में महिला के अंगूठे के निशान की बात दर्ज हैं। किंतु वास्तविकता यह थी कि महिला के हाथ पूरे तरह जले हुए थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार महिला के हाथ में स्याही का निशान नहीं था।
हाई कोर्ट ने मृत्युपूर्व बयान को संदिग्ध माना
महिला की बेटी के धारा-164 के बयान घटना के एक माह बाद दर्ज किए गए थे। इस दौरान बेटी उसके ससुराल पक्ष के पास थी। बहरहाल, हाई कोर्ट ने मृत्युपूर्व बयान को संदिग्ध मानते हुए अपीलकर्ताओं को दोषमुक्त करने का आदेश पारित कर दिया।