प्राथमिक पात्र, गरियाबंद। अचानक मृत पिता की साया हिलाकर दो मासूम बच्चों के स्कूल फीस जमा कर युवा गरीब गौरी शंकर कश्यप ने गणतंत्र उत्सव मनाया। 60 रुपए की मासिक फीस नहीं शंकर भर में थे पालक तो खुद गौरी संशिम में नहीं मिला था, लेकिन अब खुद के निशानों की मदद कर रहे हैं। समाज सेवक गौरी शंकर कश्यप ने भी यहीं पढ़ा लिखा युवा आबाद की श्रेणी में आते हैं, लेकिन स्वयं के खर्च से समाज सेवा और धर्म कर्म के काम में आगे रहते हैं।
पिता भागवत कश्यप के बेकरी पर गौरी की आय को मंजूरी नहीं दी गई है। इसी कमाई से गौरी शंकर कश्यप ने पिता का साया उठाते हुए दो मासूमों की पढ़ाई का खर्च उठाया। आज गौरी शंकर ने देवभोग सरस्वती मंदिर में पहली कक्षा में पढ़ने वाले छात्र दीपेश कुमार बीसी और उरमाल सरस्वती मंदिर में पढ़ने वाले कक्षा पंचम के छात्र वेदव्यास कश्यप के स्कूल शुल्क के लिए संस्था की जाँच की। 7800 का चेक बोथ इंस्टिट्यूट के प्रधान शिक्षक गौरी शंकर ने गणतंत्र दिवस मनाया।
एक पिता की मृत्यु कोरोना काल में तो दूसरी सड़क दुर्घटना में क्षति थी
सरगीगुड़ा निवासी विजेंद्र कश्यप की दो साल पहले कोरोना से मौत हो गई थी। बेटे वेद व्यास अरुण उदय की पढ़ाई के बाद कक्षा पहली तक पहुंच गई, पिता का साया उठा तो परिवार इस साल का खर्च वहन करने में अभागा है। मडागाव निवासी प्रदीप कुमार 15 मई 2023 को तेल नदी पूल के पहले कुम्हारी सोसाइटी रोड में दुर्घटना का शिकार हो गया। समय पर इलाज नहीं मिल सका इसलिए बेटा टिपेश के सर से पिता का साया उठ गया। बेटे को देवभोग संशिमं में भर्ती तो पर लीज फीस चुकानी पड़ी बेकार। दोनों मामलों की सूचना बैठक के बाद गौरी शंकर कश्यप ने पढ़ाई खर्च में बढ़ोतरी का फैसला लिया।
पोती की स्कूल फ़ेक दंग रह गई माँ
गौरी शंकर कश्यप ने बताया कि जुलाई माह में भतीजी को कान्वेंट स्कूल में भर्ती की तैयारी चल रही थी। माँ को पता चला कि पोती को भर्ती शुल्क 20 हजार रुपए जमा उधार देगा। इसी समय अपने पुराने दिन को याद कर माँ सिसक कर रो पड़ी। मां ने 2004 का किस्सा अपने बेटों को बताया, जिस समय आर्थिक तंगी के कारण गौरी को चौथी कक्षा की पढ़ाई के लिए देवभोग सशिमं विद्यालय को 60 रुपये मासिक फीस नहीं मिली। मध्य अध्ययन के बाद मूंगझार के स्कूल में भर्ती। उस अनिवार्यता से देवभोग क्षेत्र में गुणवत्ता एवं सांस्कारिक शिक्षा के लिए सरस्वती मंदिर का ही एक विकल्प सामने आया था। इस कहानी में मित्र मां का दर्द समझने के बाद गौरी शंकर कश्यप ने दोनों संस्थान में संपर्क कर दार्शनिक की सूचना दी थी।
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