पांडे अमित, खैरागढ़। सरकारी अति-जाति रहती है और नेता जनता के लिए बड़े-बड़े वादे और दावे करते हैं। अब जर्मनी के कारीगरों की पोल खुलती नजर आ रही है। खैरागढ़ जिले के अंतिम छोर पर बसे ग्राम कटमा में आजादी के बाद आज भी बिजली नहीं पहुंच पाई है। आज भी ग्रामीण अंधेरे में अपना जीवनयापन करने पर मजबूर है। ऐसे में सवाल है और कब तक अँधेरे में अंधेरा होगा। अंतिम कब गांव में बिजली की व्यवस्था।
दे दे कि, खैरागढ़ जिले के अंतिम छोर पर छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश राज्य की सीमा पर कटमा नामक गांव बसा है। मैक्कल पर्वत समूह बेस और आसपास से लगभग घने जंगल से इस गांव की दूरी खैरागढ़ जिला मुख्यालय से 60 से 65 किलोमीटर है। कटेमा 30-35 घरों की बस्तियां है, जो ग्राम पंचायत लक्षना का अधिवासी ग्राम है। ग्राम कटेमा में आज तक बिजली नहीं पहुंच पाई है। यहां के लोग आज भी पारंपरिक रूप से टोन और लालटेन जैसे टूल का उपयोग करते हैं।
हालाँकि, शासन ने गाँव में सौर मंडल से बिजली की व्यवस्था की है, लेकिन घने जंगल की वजह से सूर्य का प्रकाश कम है और बारिश के समय भी इसका महत्व नहीं है। ऐसे में ग्रामीण सौर मंडल के लीज के बाद भी बिजली की आपूर्ति नहीं की जा रही है।
साथ ही कटेमा के राशन कार्ड को सरकार द्वारा प्रदान किए जाने वाले राशन को लेने के लिए भी गांव से 17 किमी दूर अपने ग्राम पंचायत लखनऊ जाना है। हालाँकि, शासन-प्रशासन ने खैरागढ़ जिले के इस घोर आदिवासी प्रभावित क्षेत्र को लेकर अब सकारात्मक पहल की है और गांव में आईटीबीपी और जिला पुलिस संयुक्त अभियान के तहत कैंप की स्थापना की जा रही है। कैंप की स्थापना के बाद तारामंडल द्वारा अंतरराज्यीय सीमा लांघना अब कठिन हो जाएगी और क्षेत्र से लाल आतंक का जल्द ही सफाया हो जाएगा। इस कैंप में निर्मित इस कैंप में एंटी-वॉल्यूम ऑपरेशन का मिल का स्टोन भी कहा जा सकता है।
तीन राज्यों की सीमा बासा गांव कटेमा छत्तीसगढ़ का अंतिम छोरा है, जिसे जनरल का एमएमसी जोन भी माना जाता है। ऐसे में इस गांव के रियल एस्टेट तक सामुहिक ढांचे को स्थापित करना शासन-प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसे देखते हुए अब जिला पुलिस और आईटीबीपी की संयुक्त कैंप की स्थापना की जा रही है। जिससे क्षेत्र में सुरक्षा एवं शांति का वातावरण निर्मित होगा और विकास कार्यों में तेजी आएगी। सुरक्षा कैंप स्थापित करने के कारण अब अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करना महंगा नहीं होगा, जिससे शासन की ओर से जन हितैषी मंजूरी का लाभ पुजारियों को मिल सकेगा।
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