नितिन नामदेव, रायपुर। गतिमान चातुर्मासिक यात्रा के तहत आचार्य महाश्रमण के सुशिष्य मुनिश्री सुधाकर व मुनिश्री नरेश कुमार के सान्निध्य में पूज्य “मास्कमण तपस्वी” का अभिनंदन समारोह 30 अगस्त को श्रीलाल गंगा पटवा भवन टैगोर नगर में आयोजित किया गया। विशेष यह है कि रायपुर जैन तेरापंथ समाज में मुनिश्री की विशेष प्रेरणा से प्रथम बार पांच मासखमण तपस्या यानी एक माह तक किसी भी प्रकार के अन्न का त्याग रूपी तपस्या सुखसाता स्कोनस परिसम्पन्न हुई। इस अवसर पर मुनिश्री सुधाकर ने कहा कि तप तपता है और जीवन को स्थिरता मिलती है।
आज त्रिपंथ धर्म संघ के आचार्य श्रीजयाचार्य के 144वें निर्वाण दिवस अवसर पर मुनिश्री सुधाकर ने कहा कि धरती पर महापुरुषों का अवतरण कभी-कभी होता है। ऐसे ही विशेष प्रतिभा के धनी थे जयाचार्य। संभावित साधना के बल पर उन्हें देवीय शक्ति प्राप्त हुई थी जिसका चमत्कार यदा-कदा देखने को मिलता है। उनका तेरस पंथ धर्म संघ पर विशेष उपकार है। मुनिश्री ने आगे कहा कि वह पुरुष नहीं महापुरुष थे, मानव नहीं महामानव थे अर्थात् देव तुल्य थे क्योंकि कि रात्रि में रात्रि में साक्षात दर्शन करने के लिए जयपुर नरेश वे बादल आये थे।
मुनिश्री ने अपने सम्मुख में 36 की तपस्या का प्रत्याख्यान लेकर उपस्थित तपस्वी कमल ललवानी की तपस्या की मौना की भरपूर प्रशंसा की और उपस्थित श्रावक-श्राविका आचार्य को प्रेरणा आह्वाहन किया।
मुनिश्री नरेश कुमार ने सुमधुर गीतिका का संगान किया
टेरापंथ धर्म संघ की सभी संघीय विचारधारा के साथ एज़िटेल ने भी तपस्वी के ताप की मोनिका की। ऑपरेशन मनीष नाहर ने किया। अन्य तपस्या के तपस्वी ममता चोपड़ा-58, मुक्ता छाजेड़-6, मानक चोपड़ा व भंडारी अपनी सिद्धी तप के प्रत्याख्यान के साथ उपस्थित रहे।