एयरपोर्ट गहवाई, बिलासपुर। तलाक के मामले में महिला ने बिना सबूत के अपने पति पर ससुराल और चारित्रिक आरोप लगाए। उच्च न्यायालय ने इसे नारियल की श्रेणी में माना है। दोनों के खिलाफ गवाही के बाद पत्नी द्वारा फैमिली कोर्ट से तलाक की डिक्री की पेशी याचिका को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। इसे भी पढ़ें : हरेली तिहार पर साय सरकार की ताजातरीन, 535 चिकित्सा अधिकारियों का जारी हुआ पोस्ट इंस्टालेशन ऑर्डर…
असल में, कुवैत महिला नगर निगम में रेस्तरां हैं। उनका विवाह 29 जनवरी 2003 को त्रिवेणी भवन बिलासपुर में हिंदू रीति-रिवाज से हुआ। पति 10 साल छोटी थी, और पति प्राइवेट दुकान में काम करती थी। शादी के बाद पत्नी का कॉन्स्टिट्यूशन फिर से शुरू हो गया, जिसकी वजह से पति से विवाद हो गया। इसी बीच 3 जून 2004 को एक बच्चे का जन्म हुआ। पति-पत्नी के बीच लड़ाई जारी है. कुछ दिन बाद पत्नी अपने बच्चे को लेकर चली गई।
पति ने इस बीच बच्चे का मुंडन संस्कार के लिए द्वारका जाने का कार्यक्रम तय किया, पत्नी ने इसके लिए सहमति दी। बाद में पति और मुस्लिम लोगों की गैर-मौजूदगी में उनके बच्चे का मुंडन संस्कार कर दिया गया। वर्ष 2012 पति अपनी पत्नी को ले गया, लेकिन पत्नी ने उसका साथ निभाना बंद कर दिया। इस पर पति ने तलाक की अर्जी कोर्ट में दी। पारिवारिक न्यायालय ने इसे स्वीकार कर लिया।
इसके बाद पत्नी की ओर से उच्च न्यायालय में अपील कर तलाक के फैसले को खारिज करने की मांग की गई। उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद परिवार न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि, महिला ने अपने पति पर आरोप लगाया है कि वह अपने पति पर आरोप लगा रही है, वह मनगढ़ंत है। और आरोप को प्रमाणित करने के लिए कोई भी दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया गया है।