सुविधाओं के लिए किराये पर ग्रामीण: सड़क, बच्चों के उत्पाद और बिजली से लेकर 60 परिवार तक, यहां की खली में पढ़ने को मजबूर हैं

सुशील सलामत, कांकेर। हर साल छत्तीसगढ़ विकास की सीढ़ियाँ चढ़ रही हैं। लेकिन प्रदेश के कांकेर जिले का एक गांव आज भी उद्यमों से शुरू होता है। डिजिटलीकरण और विकास के इस दौर में भी अम्बाबेड़ा तहसील के मनकोट गांव में जीवन के आध्यात्म की रोशनी अब तक नहीं पहुंच पाई है। यहां 60 से ज्यादा परिवार रहते हैं, जिनमें अब तक बिजली, सड़क और पीने का शुद्ध पानी तक नहीं मिल सका। विकास का ढोल पीटने वाले सामुद्रिक और प्रशासन की ओर से भी कोई मदद नहीं कर सके। कई बार प्रशासन से प्रशासन के बाद भी गांव में समस्या जस की तस बनी हुई है।

फोटो: मजबूर ग्रामीण को विक्रय का गंदा पानी पीना

गांव में सड़क न से यहां मेडिकल समेत कई तरह के पोर्टफोलियो का सामना करना पड़ता है। शुद्ध पानी पीने से नहीं मिलने से कई बीमारियों का खतरा पैदा हो गया है। यहां तक ​​की रसोई में भी बच्चों को यहां की खाकी में पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है।मानकोट के आध्ययन के लिए बारिश के दिनों में यह गांव एक टापू बन जाता है।

प्रसव के लिए महिलाएं खाट पर ले जाती हैं अस्पताल

गांव में चिकित्सा सेवाओं का भी कोई खास खामी नहीं है, और महिलाओं के लिए खाट या चमत्कार पर लाडकर 5 किमी तक ले जाया जाता है। इसके बाद रिटेलर किसी भी गाड़ी से आमाबेड़ा स्वास्थ्य केंद्र की जानकारी ले सकते हैं।

ग्रामीण श्रमदान कर हर साल सड़कें टूट जाती हैं

पुनर्मूल्यांकन का कहना है कि वे हर साल श्रमदान करके 5 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाते हैं, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है। 50 साल और ग्राम पटेल ने बताया कि वे कई वर्षों से सड़क, पानी और बिजली की मांग कर रहे हैं, बीजेपी की रमन सरकार के समय रायपुर तक आवेदन भी भेजे गए थे, लेकिन हालात में कोई सुधार नहीं हुआ। साथ ही, क्षेत्र में बिजली न होने के कारण जंगली कोयले का डर भी बना हुआ है, जो बिजली की चिंता का एक और कारण है।

फ़्रॉम और झरिया का गंदा पानी को मजबूर ग्रामीण

हालाँकि, 2020-21 में नल-जल योजना के तहत 80 लाख रुपये खर्च कर पानी के मंज़िल और पाइपलाइन का नाम रखा गया था, लेकिन अब तक सिर्फ 6 घरों में पानी पहुंच पाया है, जबकि बाकी 56 घरों में पानी का कोई डिज़ाइन नहीं हुआ है। यह स्थिति इस बात को उजागर करती है कि यह पूरी तरह से अधूरा और लाभदायक साबित हो रहा है। रिवोल्यूशन का कहना है कि अगर 80 लाख रुपये में बोरवेल जहाज़ चला गया तो कम से कम 20 घरों को पानी मिल सकता था, और उन्हें जमीन और झरिया का गंदा पानी न फ़्रांसिसी हिस्सा मिल सकता था। सैकड़ों की आबादी में आज भी पानी की ज़रूरत पूरी होती है, लेकिन गर्मी के दिनों में यह भी ज़रूरी लगता है।

मोबाइल चार्ज करने जाते हैं दूसरे गांव

यहां एक भी बिजली का खंभा नहीं है, और लोग मोबाइल और टेलीकॉम को चार्ज करने के लिए दूसरे जिले में जाते हैं। स्कूल जाने वाले बच्चे भी सौरव से बैटरी चार्ज कर टॉर्च की रोशनी में पढ़ाई करते हैं।

इन सभी संभावनाओं के बावजूद प्रश्न यह है कि आजादी के अमृतकाल में भी इन अवशेषों का कब तक इंतजार करना चाहिए।