महानवमी पर मां बम्लेश्वरी की विशेष पूजा- साबूत: देर रात तक हुआ था ज्योति कलशों का विसर्जन, मंदिर में ज्योति कलशों का विसर्जन

पांडे अमित, डोंगरगढ़। बुधवार को राम नवमी के साथ ही माता के 9वें दिव्य उत्सव का समापन हुआ। प्राचीन में नाम आँखों से भक्तों ने माता को बिदाई दी। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध तीर्थ डोंगरगढ़ में देर रात तक माता बम्लेश्वरी की ज्योति कलश का विसर्जन हुआ। साथ ही शहर के अन्य देवी देवताओं के ज्योति कलशों का विसर्जन भी रविवार की रात स्थानीय महावीर तालाब में हुआ।

बता दें कि माता बम्लेश्वरी के धाम डोंगरगढ़ में नवरात्रि को बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यहां कई वर्षों से दोनों देशों की आस्था की हजारों ज्योत जलाई जाती है। पहले दिन से ही पूरी विधि विधान से माता की पूजा का पाठ और ज्वारों का नौ दिन की रात जतन किया जाता है। अष्टमी को जन्म के बाद नवमी की रात माता के ज्योत जवारों का पूर्ण भक्ति भाव से विसर्जन किया जाता है।

आखिरी दिन ज्योति सिर पर महिलाएं ये हुनकी स्वरूप में मंदिर से तालाब तक आती हैं। डोंगरगढ़ में विसर्जन के लिए मंदिर ट्रस्ट, शासन प्रशासन, रेलविभाग के साथ-साथ स्थानीय नगर निवासी भी सहयोग करते हैं। इसी वजह से कई सालो से ये परंपरा अपने भव्य स्वरूप में चलती आ रही है। महानवमी पर नीचे मंदिर के मनमोहक हुंकी ने रूट के अनुसार कहा कि मुंबई के हाहाहा रेलवे ट्रैक से होते हुए शीतला मंदिर के सामने से स्थानीय महावीर तालाब पहुंचा। इस दौरान नीचे मंदिर और शीतला मंदिर की माई ज्योत की पारंपरिक परंपरा भी हुई। ज्योति विसर्जन के बाद आगे की मूर्ति के लिए। यह परंपरा डोंगरगढ़ में भी लंबे समय से चली आ रही है।

जवारा विसर्जन को लेकर रेल की पटरियां हैं

कई दशकों से माता की ज्योति का विसर्जन होता है और मुंबई के प्रमुख रेल मार्ग पर मेगा ब्लॉक किया जाता है और तीन घंटे तक इस रेल मार्ग पर रेल के पीछे थमा जाते हैं। रेल प्रशासन और मिल कर कई दशकों से चली आ रही इस परंपरा का कुशल निर्वाह कर रहे हैं। वहीं आज भी महाराष्ट्र के शहनाई वादन की परंपरा चल रही है, शहनाई वादकों की टीम महाराष्ट्र के सालेसा से आती है। पर्व की शुरुआत से लेकर नवरात्र में आरती और विसर्जन के दौरान शहाना वादन होता है। 9 दिन तक शहनाई वादक वाले कलाकार डोंगरगढ़ में सेवा करते हैं। ज्योति कलशों की अगुआई से लेकर विसर्जन तक निरंतर बजती रहती है। ये परंपरा कई दशकों से ऐसी ही बाचलत चली आ रही है।

महानवमी की देर रात तक नीचे बम्लेश्वरी मंदिर की 901 और शीतला मंदिर में 61 ज्योत के साथ शहर भर के सभी देवी मंदिरों की विशाल ज्योति स्थानीय महावीर तालाब के किनारे पर स्थित है, जहां पूरी विधि विधान से माता के ज्योत जवारे का विसर्जन किया गया था। इस दौरान हजारों की संख्या में भक्त और सेवादार मौजूद रहे. पूरा डोंगरगढ़ जय माता दी के नारों से गूंजता रहा।

मां बम्लेश्वरी देवी का स्वर्ण मुकुट बना आकर्षण का केंद्र

बता दें कि नवरात्र में पंचमी को मां बम्लेश्वरी की माता कात्यानी के स्वरूप में पूजा की गई थी। इस दौरान माँ बम्लेश्वरी ट्रस्ट समिति एवं भक्तों के सहयोग से माता को लगभग 450 ग्राम सोने से बनी मुकुट की मूर्तियाँ मिलीं। इसकी कीमत लगभग 35 लाख रुपये बताई जा रही है। जो पूरे नवरात्र में श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

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