दो वीआईपी वन भैंसे 2 माह में 4 लाख 60 हजार का पानी, यानी देख सकते हैं सिर्फ वीआईपी लोग, 6 वन भैंसे पर अब तक करोड़ों रुपए खर्च

रायपुर। छत्तीसगढ़ के बारावापारा अभ्यारण्य में दो वीआईपी वन भैंसे हैं। उदाहरण के लिए 7 पर्दों के पीछे छिपा कर रखा गया है, जिनमें से केवल एक ही व्यक्ति को देखा जा सकता है। इन बफ़ेलो के खाने-पीने, दस्तावेज़ और नामांकन के लिए सरकार ने 1 करोड़ 50 लाख रुपये से भी अधिक खर्च किया है। लेकिन जिस उद्देश्य से इन बफेलो को विदेश से छत्तीसगढ़ लाया गया है ना तो वह पूरा हो सका और ना ही इन आध्यात्मप्राणियों को आजादी से विचरण करने दिया जा रहा है।

असल में, 12 मई 2020 को असम से प्रदेश के बारनवापारा अभ्यारण्य लाये गये शक्तिशाली साल के दो सब एडल्ट वन भैंसों को असम के मानस टाइगर रिजर्व से मछली पकड़ने के बाद दो महीने वहां पट्टों में रखा गया, एक नर था और एक मादा। वहां पानी भरने की व्यवस्था के लिए चार लाख 4,56,580 रुपये का बजट दिया गया। इसके बाद जब ये बारनवापारा लाए गए तो उनके लिए 6 नए लेक्निकी प्रोजेक्ट्स तय किए गए।

बफ़ेलो पर करोड़ों खर्च

2023 में चार और मादा वन मादा बफ़ेलो असम से लाए गए, तब एक लाख रुपए खास के लिए दिए गए, जिस पर पानी डाल कर तापमान नियंत्रित रखा गया था। वर्ष 2020 में असम में जो रिकार्ड बनाया गया था, उस पर कितना खर्च हुआ, इसकी जानकारी वन विभाग के पास नहीं है। लेकिन 2023 में एक ही बार में 15 लाख की रिलीज हुई। दोनों बार वन बफ़ेलो के असम से परिवहन के लिए 58 लाख जारी किए गए।

जू अथॉरिटीज ने जन्म केंद्र की मंजूरी नहीं दी

वर्ष 2019-2020 से लेकर 20-21 तक बरनवापारा के जन्म केंद्र के निर्माण और नियुक्ति के लिए एक करोड़ साठ लाख रुपये जारी किए गए। इसके अलावा 2021 से आज तक और भी राशि खर्च बताया गया है। इतना सब करने के लिए केंद्र जू अथॉरिटी ने भी दो टूक शब्दों में मना कर दिया है कि, बारनवापारा अभ्यारण्य में जन्म केंद्र की मंजूरी हम नहीं देंगे।

एक साल में 40 लाख का खाना

दस्तावेज़ में बताया गया है कि सिर्फ 23-24 में बारावापारा में 6 वन भैंसों के भोजन – चना, खरी, चना, पैरा कुट्टी, हरे, घास के लिए 40 लाख रुपये जारी किए गए हैं।

जानिए कैसे बढ़ेगा वंश वृद्धि

रायपुर के भैंसा जीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने वन विभाग पर लगाया आरोप, योजना तो यह थी कि असम से वन भैंसा, छत्तीसगढ़ के वन भैंसा का पंजीकरण करा कर वंश वृद्धि की जाए लेकिन छत्तीसगढ़ में शुद्ध नस्ल का सिर्फ एक ही नर वन भैंसा है। ‘छोटू’ उदंती सीता-नदी टाइगर रिजर्व में बचा है, जो बूढ़ा है और उम्र के अंतिम निरीक्षण पर है। उनकी उम्र करीब 24 साल है। वन बफ़ेलो की अधिकतम आयु 25 वर्ष होती है, बंधक में 2-4 वर्ष और जी सकते हैं।

बुड्ढापे के कारण, जब तक कि उनके वीर्यपात को रद्द नहीं किया गया, तब तक उनके द्वारा निकाले गए कलात्मक नामांकन की योजना बनाई गई, जिसकी तैयारी में केवल लाखों रुपये खर्च किए गए हैं। सिंघवी ने आगाह किया कि, यह शख्स ही आत्मघाती होगा जैसे कि किसी 90 साल के बुजुर्ग से जबरदस्ती वीर्य निकलवाना, छोटू ऐसा करने से भी मर सकता है, जवाबी कार्रवाई प्रधान मुख्य वन संरक्षक की रहेगी।

बफ़ेलो को उदंती सीता नदी टाइगर रिज़र्व में छोड़ दिया जाएगा

अब अगर असम से लाए गए वन बफ़ेलो को अगर उदंती सीता नदी टाइगर रिज़र्व में ख़त्म किया जाता है, तो वहां ब्रसे क्रॉस ब्रीड के वन बफ़ेलो हैं। इन क्रॉस एब्सेम की शुद्ध नस्ल की मादा वन बफ़ेलो की संतानें मूल नस्ल की नहीं। उदाहरण के लिए वहाँ पर भी हटाया नहीं जा सकता।

वन बफ़ेलो को बंधक बंधक रखने की योजना थी ?

सिंघवी ने आरोप लगाया कि, पहले दिन से ही प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणि) के गुप्त प्लान के अनुसार, समलैंगिक बारावापारा अभयारण्य में ही बंधक रखा गया था। उदाहरण के लिए बारनवापारा अभयारण में भारत सरकार की शर्त के खिलाफ बंधक बनाया गया है।

सिंघवी का आरोप है कि, अब ये गेस्ट हाउस कर बारनवापारा के आवेदनों में ही वंश वृद्धि होगी, जिसमें एक ही नर की संतति से लगातार वंश वृद्धि होगी, जिससे इनकी जीन फेल हो जाएगी।

किस जनता के लिए 40 लाख रुपये का खाना लाये वन भैंसे?

इस मामले में प्रमुख जीव संरक्षक (वन्यप्राणी) से पूछा गया कि, असम में स्वतंत्र विचार करने वाले वन भैंसे जो वहां के प्राकृतिक वनस्पति, घास खा कर जिन्दा थे। वहां रहने से प्रकृति के समुद्र तट पर वंश वृद्धि होती है। छत्तीसगढ़ में हर साल जनता की 40 लाख की कमाई का क्या मतलब है?

जनता के करोड़ों रुपए टूट गए?

सिंघवी ने पूछा कि सिर्फ वी.आई.पी. को ही क्यों देखा जाता हैॽ जब देखा गया कि छत्तीसगढ़ में शुद्ध नस्ल का एक ही वन भैसा बचा है, जो बूढ़ा है। जिससे वंश वृद्धि नहीं हो सकी, तो फिर जनता का करोडों रूपया क्यों टूटा? ये कैसी डकैती सोच है कि, खुले में घूम रहे संकटग्रस्त मूक जानवरों को बंधक बनाकर वन विभाग के अधिकारियों को खुशी मिल रही है?

करोड़ कितने रूपये खर्च?

सिंघवी ने आरोप लगाया कि, वन विभाग के मुख्यालय में स्थित वन विभाग और क्षेत्रीय निदेशक सीता नदी टाइगर रिज़र्व में, वार्षिक बजट आवंटित किया जाता है, उन्हें असम और बारावापारा में वन भैसों पर खर्च की गई राशि की जानकारी ही नहीं है। इसलिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणि) को आज की तारीख तक असम में रखे गए वन बफेलो पर कुल कितने करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, इसकी जानकारी जारी करके इसकी जानकारी दी जानी चाहिए।

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