जिला अस्पताल बना रहा जोड़ प्रत्यारोपण का बड़ा केंद्र : दूसरे जिले से भी इस सेवा का लाभ लें मुंगेली पहुंच रहे लोग, बड़े पैमाने पर काफी खर्च करने के बाद मिलती है यह सुविधा

रोहित कश्यप, मुंगेली। जिस तरह की लाइफस्टाइल हो गई है, उसमें कई तरह की रुचियां तेजी से बढ़ रही हैं। द लैंसेट रिह्युमेटोलॉजी जनरल के प्रकाशित अध्ययन में चिंता ने चिंता व्यक्त की है कि सन 2050 से 100 करोड़ से अधिक लोग ऑस्टियरथर रिसर्च की चपेट में आ सकते हैं। जब पत्थरों के सिरों को सहारा देने वाले डॉक्यूमेंट्री कार्टिलेज में देरी हो रही है, तब यह समस्या उत्पन्न होती है।

समय के साथ-साथ जोड़ों का कार्टिलेज (रेशेदार सेंसेशन) देर से होने लगता है और अधिकतर इसका प्रभाव घुटनों और जोड़ों में देखने को मिलता है और बहुत तेज दर्द होता है। ऐसे में ज्वाइंट के दर्द से राहत पाने का सबसे बेहतर उपाय जॉइंट रिप्लेसमेंट (ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी) है, जो आजकल काफी लोकप्रिय हो रही है।

डॉ. श्रेयांश पारख (अस्थि रोग एवं जोड़ विशेषज्ञ विशेषज्ञ) ने बताया कि ज्वाइंट लाइनिंग्स के डैमेज पार्ट्स को आर्टिफिशियल पार्ट्स से जोड़ा जाता है, जिसमें प्रोस्थेसिस (क्रिम अंग) को शामिल किया जाता है। यह मेटल, प्लास्टिक और कंस्ट्रक्शन मैटेरियल्स से बनता है। ज्वाइंट कार्य सर्जरी का मुख्य उद्देश्य दर्द को दूर करना और जोड़ों को सामान्य बनाने के लिए तैयार करना है।

डॉ. पारख ने बताया कि जिला अस्पताल मुंगेली में जोड़ों की सुविधा के लिए न केवल मुंगेली, जांजगीर-चाँपा की तरह अन्य कई जिलों से भी इस सेवा का लाभ मुंगेली आ रहे हैं। यह एक कॉम्प्लेक्स एवं लैबोरेटरी सर्जरी है, जोकी जमात बड़े शहरों के बड़े पैमाने पर प्रयोगशालाओं में काम करती थी, लेकिन अब जिला अस्पताल में प्रयोगशाला टीम की भर्ती में इस सर्जरी का लाभ मरीजों को लगातार एवं मुफ्त मिल रहा है।

पारख ने बताया, सर्जिकल तकनीक में जिस तरह से प्रगति हो रही है, उसे देखते हुए यह प्रक्रिया बहुत ही सुरक्षित है और जल्दी हो जाती है। सर्जरी के बाद बैचलर में बहुत जल्दी होता है और दर्द में भी सुधार देखने को मिलता है। अधिकांश समुद्र तट में सर्जरी के पहले दिन से ही स्थिर होना और विकास के लिए कहा जाता है। कॉलेज केयर और फिजियोप्लास्टी से लॉटरी को ऑपरेशन के दूसरे दिन से टॉयलेट जाने जैसे नियमित एसोसिएशन को मदद शुरू करने में मदद मिलती है। निरंतर अभ्यास से रोगी अधिकांश दिनों तक अस्पताल में नहीं रुकता, जिससे रोगी खुश रहता है।

उन्होंने बताया कि अगर किसी को अर्थराइटिस हो जाता है तो लाइफस्टाइल में बदलाव करके इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। इसके लिए उसे उठक-बैठक करना, पाल्थी बेकारी, सीढ़ियां चढ़ने और भारतीय शौचालय सीट का उपयोग करने से आदि से बचना चाहिए। इसके अलावा अगर आप शुरुआती तौर पर विशेषज्ञ की सलाह लेते हैं तो रोग के विकसित होने की संभावना कम हो जाएगी और इलाज के संबंध में सही निर्णय लिया जा सकेगा।