नई दिल्ली: रविचंद्रन अश्विन का सफर तमिलनाडु के चेन्नई की धूल भरी पिचों पर शुरू हुआ. 1986 में जन्मे, उनका क्रिकेट जुनून जल्दी ही उभर आया, जिसके चलते वे 12 साल की उम्र में एमआरएफ अकादमी में चले गए। यहां, उन्होंने सुनील सुब्रमण्यम और एल. शिवरामकृष्णन जैसे दिग्गजों के मार्गदर्शन में अपनी ऑफ-स्पिन गेंदबाजी को निखारा।
अश्विन की प्रतिभा पर किसी का ध्यान नहीं गया। उन्होंने अपने नियंत्रण और सटीकता से प्रभावित करते हुए 2006 में तमिलनाडु के लिए प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया। उनके लगातार प्रदर्शन ने उन्हें 2010 में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के लिए कॉल-अप दिलाया, जहां उन्होंने चेन्नई सुपर किंग्स का प्रतिनिधित्व किया। आईपीएल ने अश्विन को एक बड़ा मंच और शेन वार्न जैसे अनुभवी क्रिकेटरों से सीखने का अवसर प्रदान किया।
काउंटी क्रिकेट कार्यकाल और अंतर्राष्ट्रीय सफलता:
2011 में, अश्विन ने इंग्लैंड में एसेक्स के साथ काउंटी कार्यकाल शुरू किया। विभिन्न पिचों और परिस्थितियों के इस अनुभव ने उनकी गेंदबाज़ी को और निखारा, जिससे वह और अधिक अनुकूलनीय बन गए। यह अनुभव महत्वपूर्ण साबित हुआ क्योंकि वह भारत में अधिक परिपक्व और आत्मविश्वासी गेंदबाज बनकर लौटे।
उनकी घरेलू सफलता 2011 में अंतरराष्ट्रीय मंच पर तब्दील हो गई। अश्विन ने वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया और दूसरी पारी में पांच विकेट लिए। उन्होंने जल्द ही खुद को भारत के प्रमुख स्पिनर के रूप में स्थापित कर लिया और ऑस्ट्रेलिया (2011-12) और इंग्लैंड (2014) में उनकी विदेशी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अश्विन के शिखर और चुनौतियाँ:
अश्विन का शिखर 2015-16 सीज़न में आया, जहां उन्होंने आईसीसी टेस्ट गेंदबाजी रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल किया। कैरम बॉल सहित उनकी विविधताओं ने दुनिया भर के बल्लेबाजों को परेशान कर दिया। उन्होंने रवींद्र जड़ेजा के साथ एक मजबूत साझेदारी बनाई, जिससे भारत को टेस्ट क्रिकेट पर हावी होने में मदद मिली।
हालाँकि, फॉर्म में गिरावट और उनकी गेंदबाज़ी शैली की आलोचना के रूप में चुनौतियाँ सामने आईं। उन्हें 2018 में भारतीय टीम से बाहर कर दिया गया था, लेकिन उन्होंने दृढ़ संकल्प के साथ वापसी की और घरेलू क्रिकेट में प्रभावशाली प्रदर्शन के साथ अपनी जगह फिर से हासिल कर ली।
खुद को नया रूप देना और आगे की ओर देखना:
अनुकूलनशीलता अश्विन के करियर की पहचान रही है। उन्होंने अपने शस्त्रागार में “मांकड़” बर्खास्तगी जैसे नए हथियार जोड़कर खुद को फिर से स्थापित किया है। वह बल्ले और गेंद दोनों से योगदान देकर भारतीय टीम का अहम हिस्सा बने हुए हैं।
जैसे ही अश्विन मैदान पर कदम रखते हैं, चेन्नई क्लब से टेस्ट स्टारडम तक की उनकी यात्रा महत्वाकांक्षी क्रिकेटरों के लिए प्रेरणा का काम करती है।