नई दिल्ली सोनिया आज भले ही राजनीति में पहले इतनी सक्रिय नहीं थीं, लेकिन बाद में सत्य पक्ष से लेकर आश्रम के बीच उनकी अपनी एक अलग जगह है। केवल राजनीतिक आश्रमों के बीच ही नहीं बल्कि यह कहा जाता है कि भारतीय जनमानस के बीच उनकी एक अलग पहचान है। 80 के दशक के बाद की भारतीय राजनीति में अपनी अमित छाप छोड़ वाली सोनिया गांधी आज अपना 77वां जन्मदिन मना रही हैं।
एक समय था जब सोनिया को भारत के बारे में बहुत कुछ भी नहीं पता था। लेकिन शायद सोनिया की किस्मत में हिंदुस्तान की तलाश किसी और मासूमियत से लिखी गई थी। कैंब्रिज के एक ग्रीक रेस्तरां वर्सिटी में दो छात्रों को खाने-पीने की लत थी। यूनिवर्सिटी के मालिक चार्ल्स एंटोनी राजीव गांधी के गहरे दोस्त थे। सोनिया और राजीव की पहली मुलाकात भी इसी रेस्टोरेंट में 1965 में हुई थी।
इसी रेस्तरां से शुरू हुआ राजीव और सोनिया का रिश्ता एक रिश्ता में बंध गया। हर प्रेम कहानी की तरह राजीव और सोनिया की जिंदगी में भी कई रचनाएँ आईं। दोनों ने जब शादी का फैसला किया तो उनके परिजनों के लिए यह फैसला आसान नहीं था। राजीव जहां भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे थे, तो वहीं सोनिया एक साधारण से परिवार की लड़की थीं।
सोनिया के पिता को ये रिश्ता बिल्कुल समझ नहीं आया था, अपनी गर्लफ्रेंड सी बेटी को वो एक अलग देश में परेशान नहीं करना चाहते थे. इस बात का डर था कि भारत के लोग सोनिया को कभी स्वीकार नहीं करेंगे, लेकिन सोनिया और राजीव के प्यार के आगे झुकना और राजीव से मुलाकात के बाद फाइनली सोनिया के पिता ने शादी के लिए हामी भर दी।
शादी से पहले सोनिया को भारत आना था। इंदिरा गांधी के भाषण में प्रधानमंत्री ने कही ये बात, इसलिए बिना शादी के सोनिया को घर में रखना सही नहीं मतलब, तो सोनिया के रहन-सहन का खुलासा अमिताभ के घर करना पड़ा। उस वक्त अमिताभ और राजीव जिगरी दोस्त बने थे। 13 जनवरी 1968 को सोनिया दिल्ली के तट पर और अमिताभ के घर में रहने वाले मालदीव में उन्हें भारतीय रीति-रिवाजों के दर्शन का मौका मिला।
नेहरू-गांधी परिवार के वंशज राजीव गांधी से 25 फरवरी 1968 को विवाह के बाद जीवन में तेजी से बदलाव का दौर शुरू हुआ। सोनिया और राजीव की जिंदगी के शुरूआती 13 साल में कई प्रेरणाएं-बलात्कारों से गुजरे। पहले विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मौत, उसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या और सात साल बाद 21 मई, 1991 को राजीव गांधी की तेल कंपनी श्रीपेरंबदूर में हुई एक रैली में हुई हत्या के बाद सोनिया गांधी की जिंदगी पूरी तरह बदल गई।
हालाँकि, सोनिया गांधी ने दूर से सक्रिय राजनीतिक भागीदारी शुरू की, लेकिन भाग्य ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखी थी। एक समय ऐसा भी आया जब वे देश के प्रधान मंत्री बन सकते थे, लेकिन उन्होंने मनमोहन सिंह को पद दिया। सहयोगी पार्टी के अध्यक्ष कांग्रेस को बनाने-संवारने के साथ सरकार की दिशा को सही दिशा में रखते हुए उन्होंने अदा की भूमिका निभाई।
सबसे लंबे समय तक कांग्रेस अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी ने स्वास्थ्य संबंधी बातें पिछले कुछ वर्षों में राजनीति से सक्रिय होकर दूरी बना ली हैं। इस समय उनके बेटे राहुल गांधी और बेटी प्रियंका गांधी गांधी पार्टी में अहम भूमिका निभा रहे हैं।