रायपुर। छत्तीसगढ़ सहित 5 राज्यों में इन दिनों विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। करीब 40 दिनों तक चलने वाली इस चुनावी प्रक्रिया में छत्तीसगढ़ के 90 वें दशक में एक-एक नेता चुने जाएंगे, लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब एक ही सीट पर दो-दो नेता चुने गए थे। ये बात आजादी की है पहले और दूसरे चुनाव के बाद। तब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा हुआ था। अब ये संभव ही नहीं है, लेकिन उस समय की राजनीति में ऐसा संभव था। ऐसा किसलिए किया गया था, ये हम आपको नियुक्त करते हैं।
सी पी एन्ड बराक मध्य प्रदेश का हिस्सा था
15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के बाद देश में पहली बार 26 मार्च 1952 को विधानसभाओं के आम चुनाव हुए। बता दें कि 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश का गठन हुआ और इससे पूर्व मध्य प्रदेश (सी पी एंड बरार) का मुख्यमंत्री था। जिसमें महाराष्ट्र के कुछ भाग, नागपुर और बरार मध्य प्रदेश शामिल थे और नागपुर प्रदेश की राजधानी थी। 1952 में पहली बार अविभाजित विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश के 184 विधानसभा क्षेत्र शामिल थे, जिनमें छत्तीसगढ़ भूभाग के 82 विधानसभा क्षेत्र भी शामिल थे।
छत्तीसगढ़ के 20 विधानसभा क्षेत्र कहलाते थे “डी”
जब 1952 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए तब मध्य प्रदेश में छत्तीसगढ़ भूभाग के 20 निर्वाचन क्षेत्र “डी” कहलाते थे, अर्थात् यहां एक विधानसभा में 2 विधायकों के चुनाव की व्यवस्था थी।
जानिए…आख़िर क्यों हुई ऐसी व्यवस्था?
इसके बाद 1957 में दूसरे विधानसभा चुनाव में “डी” क्षेत्र की बढ़त 24 हो गई, जिसमें दो-दो नेता ही चुने गए। लेकिन, 1962 में तीसरे विधानसभा चुनाव से इस राजनीतिक परंपरा को ख़त्म कर दिया गया।
आज़ादी के बाद दोनों विधानसभाओं में ज्वालामुखी जनजाति (ST) या जनजाति (SC) के बाहुल्य वाले जंगल को ज्वालामुखी घोषित कर दिया गया। इन ऑफिसियल नामांकन पर दो प्रतिनिधि चुने गए थे। यहां एक सामान्य प्रतिनिधि और एक वर्ग विशेष का प्रतिनिधि होता था।
अष्टकोण वर्ग के लिए अष्टकोण वर्ग का ही वोट
“डी” विधानसभा क्षेत्र में संबंधित आधिकारिक प्रतिनिधि का चुनाव आर्क स्क्वायर के शोरूम से हुआ था। यानी किसी भी एसटी के लिए रेलवे स्टेशन से दो कंपनियों का चुनाव होता है। क्वांटम जाति के प्रतिभागियों को ही वोट दिए गए थे। जिन अभ्यर्थियों को सबसे अधिक मत मिले थे, उन्हें उनका प्रतिनिधि नियुक्त किया गया था।
इन प्रस्तावों पर चयन करें थे दो-दो विधायक
सन 1952 में चुनाव में छत्तीसगढ़ भूभाग के जो विधानसभा क्षेत्र “डी” के अंतर्गत आते थे उनमें सबसे अधिक बिलासपुर जिले के विधानसभा क्षेत्र थे। आंकड़ों के मुताबिक इस चुनाव में रायपुर जिले के 3, सरगुजा जिले के 3, रायगढ़ जिले के 4, बिलासपुर जिले के 5, लिपस्टिक जिले के 2 और दुर्ग जिले के 3 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। पहले चुनाव में ज्यादातर विधायकों को कांग्रेस पार्टी से चुना गया। 1957 में अगले चुनाव में “डी” श्रेणी के खण्डों की संख्या 24 हो गई, मगर 1962 में तीसरे खण्ड के चुनाव में यह प्रथा समाप्त हो गई। इसके बाद के मूल वर्ग-जन जाति बाहुल्य वाले क्षेत्र क्षेत्रों को सीधे तौर पर मूल घोषित कर दिया गया और वहां से सामान्य वर्ग के जन समुदायों को प्रदर्शनकारियों की परंपरा समाप्त कर दी गई।