9 साल की बच्ची के शव से हाई कोर्ट ने की सुनवाई, आरोपी को नहीं मिली सजा

रायपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 9 साल की बच्ची के शव से मिली नाबालिग बच्ची को सजा नहीं दी। मामले में निचली अदालत ने नवजात शिशु को केवल सात साल की सजा सुनाई थी। समीक्षा के दौरान उच्च न्यायालय ने कहा कि जीवित और मृत दोनों को गरिमा और व्यवहार का अधिकार है, लेकिन स्थायी कानून में शव से लोकतंत्र (नेक्रोफीलिया) के लिए सजा का प्रावधान नहीं है। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राकेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को मंजूरी देते हुए अपील खारिज कर दी।

बता दें कि यह घटना 18 अक्टूबर साल 2018 की है। गरियाबंद निवासी महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि वह एक कमरे में काम करती थी, उस दिन भी वह काम करती थी। घर पर उसकी नौ साल की बेटी और माँ क्या थी। काम के बाद दो में जब वह घर आई तो बेटी नहीं मिली। आसपास के रिकॉर्ड्स के बाद रिश्तो की पहचान वालों से भी बेटी के संबंध में पूछताछ की गई, लेकिन कहीं कोई पता नहीं चला।

पुलिस मामले में महिला की शिकायत दर्ज कर अपहृत बच्ची की तलाश में गायब हो गई थी। 20 अक्टूबर को पुलिस अधीक्षक कमांडेट अहिरे के निर्देशन में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक नागालैंड के अनुविभागीय अधिकारी गरियाबंद संजय ध्रुव की निगरानी में सुबह क्राइम स्क्वाड और डॉग स्क्वाड के साथ बच्ची की पतासाजी में पुलिस को भेजा गया। संशय डॉग स्क्वाड को एक संदेहास्पद वस्तु होने का संकेत मिला। गंदगी की सफाई की गई तो गम बच्ची का शव मिट्टी में दबा हुआ मिला। मॉस वर्कपालिका के डिप्टी ऑफिसर और एफएसएल शोरूम की टीम रायपुर को अपनी उपस्थिति के बारे में सूचित किया गया, जिसमें सहायक उपकरण की पहचान की गई, जिसमें कैसल द्वारा उनकी बेटी का ही शव होने की पुष्टि की गई।

पुलिस ने नीलकंठ नीलू नागेश और नितिन यादव पर संदेह के आधार पर मामला दर्ज किया, जिसमें चौथे के बाद नाबालिग का अपहरण, दोस्ती और हत्या की बात स्वीकार की गई। पुलिस ने नाबालिग नीलकंठ निवासी नीलू नागेश (22) पिता गोरेलाल निवासी डाकबंगला को गिरफ्तार कर लिया और नितिन यादव (23) पिता आनंदराम निवासी दरीपारा थाना गरियाबंद को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।

उच्च न्यायालय ने खारिज की अर्जी दाखिल की

मामले की सुनवाई के बाद ट्रायल कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश यादव को धारा 376 (3) के तहत उम्रकैद, धारा 363 के तहत दो साल से कम उम्र, धारा 302 के तहत उम्रकैद, धारा 201 के तहत सात साल और एट्रोसिटी एक्ट के तहत सजा सुनाई। की सज़ा सुनाई गई है। वहीं, ट्रायल कोर्ट ने नीलकंठ को साक्ष्य के आरोप में धारा 201 के तहत सात साल की सजा सुनाई।

बच्ची की मां को जज ने कोर्ट में दी चुनौती

फैसले में कहा गया है कि ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसे कोर्ट ने सही ठहराया है। याचिका में कहा गया था कि महिलाओं के जीवित रहने पर उनके सम्मान की रक्षा के लिए कई कानून हैं, लेकिन मृत्यु के बाद उनके सम्मान की रक्षा के लिए कोई कानून नहीं है।

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