मादक पदार्थ की फैक्ट्री।
HighLights
पुलिस सत्यापन बिना ही गुजरात के मादक पदार्थ तस्कर को दे दी फैक्ट्रीजमीन आवंटित होने के बाद चार साल से उद्योग विभाग रहा बेफ्रिक।साबुन बनाने के नाम पर ली थी फैक्ट्री,पुलिस के युवक का कोई रिकार्ड
नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। राजधानी के कटारा हिल्स थाना क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र के ग्राम बगरोदा में गुजरात एटीएस और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने कार्रवाई 1800 करोड़ रुपये से ज्यादा कीमत का मादक पदार्थ बरामद कर लिया। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने एटीएस गुजरात के साथ मिलकर बंद पड़ी फैक्ट्री में छापा मारा था। यहां से भारी मात्रा में अतिउत्तेजक मादक पदार्थ एमडी ड्रग्स बरामद हुआ है। इस मामले में भोपाल और नासिक के दो लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है।
खास बात इस इतने बड़े मादक पदार्थ तस्करी की भनक मध्यप्रदेश पुलिस के पुलिस कमिश्नर के आइपीएस अधिकारियों की पूरी टीम को नहीं लगी। इधर, फैक्ट्री मालिक ने बिना पुलिस सत्यापन के गुजरात के एक शातिर मादक पदार्थ तस्कर को यह फैक्ट्री किराये पर दे दी थी, वह फैक्ट्री में मशीनें लगाकर एमडी ड्रग्स को मुंबई, गुजरात , बेंगलुरु कोलकाता ,नेपाल तक भेज रहा था।
डीसीपी संजय अग्रवाल ने बताया कि गुजरात एटीएस की पूरी कार्रवाई की गई है,फैक्ट्री मालिक एके सिंह ने सात माह पहले यह फैक्ट्री किराये दो लोगों को दी थी।फैक्ट्री को बंद कर यह मादक पदार्थ बनाया जा रहा था।
पुलिस उपायुक्त संजय अग्रवाल ने बताया कि ग्राम बगरोदा औद्योगिक क्षेत्र की फैक्ट्री में मादक पदार्थ बनाया जा रहा था। यह फर्नीचर और लकड़ी के काम के लिए जयदीप सिंह कारखाने के लिए आवंटित हुई थी,उसके बाद उन्होंने दूसरे को यह जमीन बेच दी गई।
बिना पुलिस सत्यापन के किराये पर दे दी फैक्ट्री
पुलिस जांच में अभी तक सामने आया है कि एके सिंह ने यह जमीन को कोटरा सुल्तानाबाद निवासी अमित चतुर्वेदी के माध्यम से नासिक महाराष्ट्र निवासी सान्याल बाने के लिए किराये पर ली थी। फैक्ट्री मालिक ने किराये पर देने से पहले पुलिस सत्यापन भी नहीं कराया था और मध्यप्रदेश औद्योगिक विकास प्राधिकरण कोई सूचना नहीं दी ।
चार साल से उद्योग से भी कोई देखने नहीं गया
मध्यप्रदेश औद्योगिक विकास प्राधिकरण के पास इस फैक्ट्री के पास सिर्फ इतनी जानकारी है कि इस जमीन को फर्नीचर बनाने के नाम पर जमीन आवंटित की गई थी, उसके बाद फैक्ट्री लगी कि नहीं। इससे उनको कोई मतलब नहीं था,चार साल से मध्यप्रदेश औद्योगिक विकास प्राधिकरण कोई अधिकारी वहां नहीं गया था। इसी का फायदा उठाकर शहर के बाहर इस फैक्ट्री में आसानी से इतना बड़ा मादक पदार्थ का कारखाना लगाकर ड्रग्स बनाई जा रही थी।
दारोगा की फैक्ट्री के डर से पुलिस ने छोड़ दी थी गश्त
बगराेदा में कटारा हिल्स थाने में तैनात रहे एक दारोगा की फैक्ट्री रही है, उसके कारण कटारा हिल्स थाना पुलिस ने उस तरफ जाना ही बंद कर दिया था। थाने के एक तरह से कहे कि पुलिस ने आंखें ही बंद कर ली थी, उस फैक्ट्री में क्या हो रहा है ? इससे कोई मतलब नहीं रहता था।
हालांकि पुलिस कमिशनरी के एएसपी रैंक के अधिकारी को एक स्थानीय व्यक्ति जानकारी इसके बारे में दी थी, लेकिन उस पर भी कोई गौर नहीं किया गया था।जब सूरत में सान्याल बाने के साथी मादक पदार्थ तस्कर की गिरफ्तारी हुई तो उसने यह बात एटीएस को बताई थी, इसी कारण से एटीएस गुजरात ने इस ऑपरेशन की जानकारी भोपाल पुलिस से साझा नहीं की।
क्यों चुना भोपाल में ठिकाना
गुजरात नासिक निवासी सान्याल बाने ने मादक पदार्थ फैक्ट्री लगाने के लिए भोपाल के अमित चतुर्वेदी के माध्यम से बंद फैक्ट्री तलाश के लिए कहा था। उसने बगरोदा में बंद फैक्ट्री की तलाश कर उसे सूचना दे दी थी, यह फैक्ट्री लगाने के लिए पीछे की एक ही कारण था कि यह फैक्ट्री शहर के बाहर थी और वहां से बाहर से बाहर माल की सप्लाई बनाकर दी जा रही थी।
एमडी ड्रग्स बनाने माल भी आसानी मंगाया जा सकता था। इस मार्ग पर पुलिस रोकटोक भी ज्यादा नहीं थी। दूसरा पुलिस रोकती भी थी कि तो उसके स्थानीय मददगार काफी थे, जो आरक्षक से लेकर इंस्पेक्टर तक को पहचानते थे।
भोपाल जिला पुलिस में अधिकांश पुलिस कर्मी सालों से एक ही थानों में तैनात है, वह चुनाव के समय भोपाल से रायसेन , विदिशा , सीहोर में ? तबादला कराकर चले जाते हैं और वापस आ जाते हैं। पुराने बदमाश उनको पहचाननते थे, सान्याल बाने को उसके मददगारों ने यह बात बताई थी। इस कारण से उसने भोपाल को ठिकाना बनाया था।सात माह तक वह कामयाब भी रहा।
क्राइम ब्रांच की सबसे बड़ी नाकामी
गुजरात एटीएस और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने इस कार्रवाई ने भोपाल पुलिस के साथ क्राइम ब्रांच की पोल खोलकर रख दी थी। 80 पुलिस कर्मियों की क्राइम ब्रांच दिन रात मादक पदार्थ तस्करों को पकड्ने के दावे कर रही थी। गांजे के प्रेस नोट जारी कर वाहवाही लूट रही थी। उसके नाक के नीचे इतनी बड़ी एमडी ड्रग्स की फैक्ट्री चल रही थी। उसे कानो कान खबर तक नहीं थी। यह तब है कि जब पुलिस कमिश्नरी में जिले में एसपी की तरह क्राइम ब्रांच में एक आइपीएस अधिकारी को डीसीपी बना रखा है।
स्थानीय इंटेजिलेंस भी हाथ पर हाथ रखे बैठी रही
पुलिस कमिश्नरी की स्थानीय इंटेलिजेंस को भी इस फैक्ट्री की कोई भनक नहीं थी। यह भी जिले के एसपी स्तर के एक अधिकारी को डीसीपी बनाकर स्थानीय स्तर पर निगरानी और खुफिया जानकारी एकत्रित करने के लिए बनाया गया है,लेकिन वह सिर्फ अपने एसी आफिस तक सीमित रही।