एम्स भोपाल में मरीज की नेत्र सर्जरी के बाद डॉक्टरों की टीम।
HighLights
जैतवारा निवासी युवक बाइक हादसे का शिकार हुआ था। निजी अस्पताल में 10 दिन इलाज के बाद पहुंचा था एम्स। उसकी जैसी स्थिति थी, वैसे दुनिया में 10 से भी कम केस।
नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। सड़क हादसे का शिकार हुए एक युवक की आंख की रोशनी ही चली गई थी। घटना के बाद आंख उसकी दिमाग में जाकर फंस गई थी, जिसे एम्स के चार विभागों के डॉक्टरों की टीम द्वारा सफल सर्जरी कर निकाला गया और उसे सही जगह पर फिट किया गया।
एम्स प्रबंधन ने बताया कि भोपाल के पास स्थित जैतवारा गांव का मरीज 20 अगस्त 2024 को एक बाइक दुर्घटना का शिकार हुआ था, जिससे उसकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी। इस मामले की जटिलता इस बात से और बढ़ गई कि दुर्घटना में उसकी बाईं आंख, आंखों के बीच की एक छोटी हड्डी के अंदर खोखले हिस्से में पहुंच गई थी।
यह दुर्लभ स्थिति है। इस प्रकार के केस दुनिया में 10 से भी कम हैं। सर्जरी के दौरान प्रभावित बाईं आंख को निकालने के साथ दिमाग की नसों और चोटिल नाक का भी इलाज किया गया।
गंभीर हालत में अस्पताल आया था मरीज
जानकारी के अनुसार हादसे के बाद मरीज का 10 दिन तक एक निजी अस्पताल में इलाज चला। जहां उसे और परिजनों को बताया गया कि आंख हादसे के दौरान निकल कर ही गिर गई। जब मरीज की स्थिति बिगड़ने लगी तो परिजन उसे लेकर एम्स भोपाल पहुंचे। जहां एमआरआई जांच में आंख अंदर फंसी हुई नजर आई। जिसके बाद मरीज की सर्जरी के लिए चार विभागों की टीम बनाई गई। टीम द्वारा पहले ब्रेन के पास फंसी आंख को निकाला गया। इसके बाद दिमाग की प्रभावित नसों और नाक से हो रहे रिसाव को बंद किया गया।
दूसरी आंख की लौट रही रोशनी
हादसे के चलते मरीज की दूसरी आंख की रोशनी भी चली गई थी। एम्स में सफल सर्जरी के बाद मरीज की दूसरी आंख की रोशनी लौट आई है। हालांकि अभी मरीज सिर्फ धुंधला धुंधला ही देख पा रहा है। डॉक्टरों के अनुसार यदि मरीज हादसे के 6 घंटे के अंदर अस्पताल आ जाता तो दोनों आंखों की रोशनी बचाना संभव हो सकता था।
सर्जरी टीम में ये रहे शामिल
चोट की गंभीरता को देखते हुए इस सर्जरी के लिए न्यूरोसर्जरी, नेत्र रोग, ट्रॉमा और आपातकालीन चिकित्सा एवं एनेस्थीसिया विभागों के विशेषज्ञों की टीम बनाई गई। जिसमें मुख्य रूप से डॉ. अमित अग्रवाल (न्यूरोसर्जरी), डॉ. भावना शर्मा (नेत्र रोग), डॉ. बीएल सोनी (मैक्सिलोफेशियल सर्जन) और डॉ. वैशाली वेंडेसकर (एनेस्थीसिया) शामिल रहे।
यह एक अत्यंत जटिल मामला था, जिसके लिए कई विभागों के विशेषज्ञों का सहयोग आवश्यक था। मरीज की स्थिति गंभीर थी, लेकिन बहु-आयामी दृष्टिकोण के कारण हम इस सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दे सके। अब मरीज के चेहरे को पहले जैसा बनाने के लिए नकली आंखों का स्ट्रक्चर तैयार किया जा रहा है। दूसरी आंख की रोशनी को बेहतर करने के लिए भी प्रयास जारी है।
– डॉ. भावना शर्मा, एचओडी, नेत्र रोग विभाग, एम्स