प्राथमिक पात्र, गरियाबंद। देवभोग तहसील के सरगीबहली गांव में 60 साल के बुजुर्ग दिवाधार चुरपाल गांव में 10 साल के बच्चों के लिए कोनोक्विटी युक्त शिक्षा देने का अभियान चलाया गया है। इस वर्ष प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले 25 छात्र, कक्षा 6वीं के अलावा तीन छात्र पढ़ रहे हैं। बच्चे के प्यार से ‘अजा’ कहते हैं. ‘आजा’ की क्लास दिन में दो बार सुबह 7 से 9 बजे और शाम को 5 से 6 बजे लगती है। आजा का क्लास नियमित है.
सप्ताह भर पहले सायकल से उतरने के कारण बुजुर्ग दिवाधार का बाया पैर फैक्ट्री में लगा हुआ है। बावजूद इसके उनकी मोटरसाइकिल एक दिन के लिए भी नहीं रुकी। बारिश के दिनों में कभी-कभार ही तूफ़ानी तूफ़ान ज़रूर आता है, लेकिन चूड़पाल का दान अड़िग रहता है।
त्याग और सेवा
1965 में हीरे की पढ़ाई पूरी करने वाले दिवाधर गांधी जी को अपना आदर्श मानते थे। 1973 में नुआगुड़ा प्राथमिक शाला में दूसरे शिक्षक के रूप में पोस्टिंग हुई, लेकिन वे शिक्षक की नौकरी समाज सेवा में छोड़ दी गई। गांव से थे इसलिए राजनीतिक लीम प्रकाश में अधिकांशतः सामने नहीं दिखता। लेकिन प्रभावित प्रभावशाली लोग पंचायत निकाय के चुनाव में ले आए। 1979 में उसरीपानी के सरपंच चुने गए, तो गांव में सड़क और बिजली ले आए। 1982 में जिले का चुनाव लड़ा गया 1988 तक वे देवभोग जिले के उपाध्यक्ष रहे। श्यामा विद्या जैसे नामांकित से संपर्क बढ़ाया तो उपाध्यक्ष बने नदी पार के कई स्कूल में। झकरापारा में बौद्ध स्थापना में भी चुरपाल का बड़ा योगदान रहा। दिवाधर चर्चपाल का स्नातक पद पर रहना। राजनीति जीवन से सन्यास तक पिछले 10 साल से बच्चों को पढ़ रहे हैं।
दिखाये ये बदलाव
आज भी गांव के सरकारी अभिलेखों में पढ़ने वाले अधिकांश विद्यार्थियों को अक्षर ज्ञान, पहाड़ा, बारहखंडी आधार जैसे भूत ज्ञान नहीं है। लेकिन सरगीबहली गांव के बच्चे आबाद गांव से बेहतर हैं।
गांधी जी के विचारों से प्रेरित होकर दिवाधार चुरपाल ने शिक्षा को अपनी मातृभूमि बनाया और आज उनका यह प्रयास न केवल गांव के बच्चों का भविष्य संवार रहा है, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणास्त्रोत भी बन गया है।