नर और मादा तोप की मस्जिद: श्रीकृष्ण का एकमात्र मंदिर जहां होती है ये अनोखी परंपरा

कृष्ण जन्माष्टमी 2024: क्या है आपको ऐसी जगह के बारे में जहां पर भगवान कृष्ण को 21 तोपों की छुट्टी दी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के माता-पिता के रूप में, अछूता ही मंदिर है और मंदिर से जुड़े मंदिर में कोई ना कोई दिलचस्प किस्सा होता है। हम जिस भगवान कृष्ण के मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं वह राजस्थान में स्थित है और यह मंदिर लगभग 400 साल पुराना बताया जाता है। राजस्थान के नाथद्वारा शहर में स्थापित श्रीनाथ जी मंदिर में जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण को 21 तोपों की माला दी जाती है। यहां साल भर भगवान के बाल स्वरूप के दर्शन करने के लिए देश ही नहीं बल्कि अवतार से भी लाखों भक्त इस मंदिर में आते रहते हैं।

श्रीनाथजी कौन हैं?

श्रीनाथजी वैष्णव संप्रदाय के केंद्रीय देवता हैं। आचार्य वल्लभ ने पुष्टिमार्ग वल्लभ सम्प्रदाय की स्थापना की थी। उनके पुत्र विठ्ठलनाथजी भगवान श्रीनाथजी के सबसे बड़े भक्त थे। नाथद्वारा शहर में श्रीनाथ जी की भक्ति का प्रचार-प्रसार करने का श्रेय उन्हें ही जाता है। श्रीनाथ जी, भगवान श्रीकृष्ण के ही 7 वर्ष के बाल स्वरूप हैं, जब उन्होंने भगवान इंद्र के प्रकोप से ब्रह्माजी को बचाने के लिए अपनी सबसे छोटी उंगली को गोवर्धन पर्वत पर उठाया था।

तोपों की मस्जिद की परंपरा

यूके से करीब 40 किमी दूर नाथ द्वारा स्थित श्रीनाथ जी के मंदिर में जन्माष्टमी के मकबरे पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। यह अवसर देश-विदेश से कृष्णभक्तों का सैलाब बनता है। जन्माष्टमी के समय रात ठीक 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण को 21 तोपों की पूजा दी जाती है। जिन दो तोपों से भगवान को माता दी जाती है, उन्हें नर और माता तोप कहा जाता है। हर साल मंदिरों के अनुष्ठान इस परंपरा का निर्वाह करते हैं और भगवान श्रीकृष्ण को पूजा तोपों से स्थापित किया जाता है।

ईसाई राजसिंह ने औरंगजेब से जान पर खेलकर मूर्ति को बचाया

राजस्थान के नाथ द्वारा स्थापित श्रीनाथ जी की मूर्ति को पहले शहर और स्मारक में बदल दिया गया। जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने हिंदू मंदिरों का उद्घाटन करने का आदेश दिया तो वहां के महंत इसे लेकर पहले वृंदावन, फिर जयपुर और मारवाड़ी द्वीप पहुंचे। इसके बाद सुरक्षा के दृष्टिकोण से अलोकप्रिय पाटोदी ठाकुर ने इसे बीड़ा उठाया। 6 माह तक श्रीनाथ जी पाटोदी में विराजे और जब यह बात पता चली तो महंत ने मूर्ति को लेकर मेवाड़ का रूख कर लिया। इसके बाद कोठारिया के ठाकुर और ज्योतिषी राजसिंह ने अपनी जान पर खेलकर नाथद्वारा में श्रीनाथ जी को स्थापित करवाया था। कहा जाता है कि जब मूर्ति को लेकर रथ आगे बढ़ रही थी, तब रथ का पहिया धंस गया। इसी गांव में श्रीनाथ जी की मूर्ति स्थापित करने का निर्णय लिया गया।

जन्माष्टमी के चावल की चटनी में रखने का मन्यता

नाथ द्वारा स्थापित श्रीनाथ जी के मंदिर को ‘श्रीनाथ जी की हवेली’ कहा जाता है। श्रीनाथजी मंदिर में आने वाले भक्त अपने साथ चावल के दाने लेकर आते हैं। जन्माष्टमी की पूजा के बाद चावल के दानों को वे अपनी जेब में रख लेते हैं। ऐसी मान्यता है कि चावल के दानों में श्रीनाथ जी की छवि दिखाई देती है और घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।

मंदिर को नादिर शाह नहीं लूट पाया था

मंदिर के बारे में जब नादिर शाह को पता चला तो इसे लूटने के लिए वर्ष 1793 में नाथ द्वारा प्रचारित किया गया। मंदिर के बाहर एक फकीर ने उसे इस मंदिर में लूट पाट करने से मना कर दिया था, लेकिन नादिर शाह नहीं माना। कहा जाता है कि जैसे ही उसने मंदिर के अंदर प्रवेश किया, उसकी आंख की रोशनी चली गई। मंदिर में बिना सामान के शीशे जैसे ही वह मंदिर की चौखट के बाहर रखा, आंखों की रोशनी वापस आ गई। श्रीनाथजी के मंदिर की इस महिमा को देखकर उन्होंने मंदिर में खरीदारी करने का इरादा छोड़ दिया था।