बिलासपुर। डॉनमदेव वैष्णव जीव अभ्यारण्य को राज्य सचिवालय ने खारिज कर दिया है। पूर्व की भाजपा सरकार ने छत्तीसगढ़ में इस अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व को टक्कर दे दी थी मगर वर्तमान सरकार ने यह उल्टा निर्णय लिया।
प्राचीन जीव बोर्ड की बैठक में बदला गया फैसला
छत्तीसगढ़ के सिद्धांत भारतीय जनता पार्टी सरकार ने राज्य वैष्णव जीव मंडल की 23 मई 2017 को हुई नौवीं बैठक में कबीरधाम जिले के भोरमदेव दर्शन जीव अभयारण्य को टाइगर रिजर्व घोषित करने की पुरातनता दी थी। इसके बाद 14 नवंबर 2017 को हुई राज्य दर्शन महोत्सव बोर्ड की 10वीं बैठक में यह शपथ ली गई कि कवर्धा में स्थित भोरमदेव अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व घोषित किया जाए। बाद में कांग्रेस बोर्ड की सरकार बनी राज्य दार्शनिक जीव की 24 नवंबर 2019 को हुई बैठक में इसे टाइगर रिजर्व न घोषित करने का फैसला लिया गया।
सिंघवी ने दी कोर्ट में चुनौती
इधर उक्त फैसले को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में एक प्रवेश पत्र के माध्यम से आदरणीय जीव प्रेमी भोत सिंघवी ने चुनौती दी थी। सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से न्यायालय को बताया गया कि भोरमदेव अभ्यारण्य में निवासरत मान्यता के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सरकार की डिफॉल्ट्स से अंतिम मंजूरी कोर्ट ने दाखिल खारिज कर दी।
सरकार की ओर से बताया गया कि प्रस्तावित टाइगर रिजर्व के लिए 39 को व्यवसाय करना चाहिए। वहां से निवासरत 17566 लोगों को एक साथ जोड़ा गया। वन विभाग ने बताया कि इस प्रक्रिया में लगभग 39 लाख करोड़ का वित्तीय भार उठाया जाएगा। बीजेपी सरकार ने जब इसे टाइगर रिजर्व के खिलाफ आंदोलन की घोषणा की थी तब कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर ने टाइगर रिजर्व के खिलाफ आंदोलन की घोषणा की थी। बाद में उनके वन मंत्री बन जाने से टाइगर रिजर्व निर्णय वापस ले लिया गया।
‘एनटीसीए ने दी सलाह नहीं की’
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में इस मिट्टी के बर्तन (पीआईएल) का मकसद भोरमदेव अभयारण्य (बीडब्ल्यूएस) को बाघ अभयारण्य और चिल्फ़ी रेंज को मिट्टी के बर्तनों के रूप में नामित करना था।
मुख्य न्यायाधीश राकेश सिन्हा और न्यायाधीश एनके चंद्रवंशी ने इस मामले में स्थानीय समुदायों से संबंधित प्रक्रियात्मक घटकों और प्रकाश व्यवस्था पर निर्णय लिया। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकारी (एनटीसीए) ने डॉनमदेव पर्यटन अभयारण्य (बीडब्ल्यूएस) को टाइगर रिजर्व के रूप में घोषित करने के लिए केवल ‘उपाय’ का सुझाव दिया था और कोई दिशानिर्देश ‘सिफारिश’ जारी नहीं किया था। डिवीजन बेंच ने बताया कि एनटीसीए की सलाह से प्रक्रियागत कार्यों को पूरा करने पर सहमति दी गई थी, जिसमें इस मामले में पूरा नहीं किया गया था। इसी के आधार पर कोर्ट ने दाखिल खारिज कर दी।
एनटीसीए की वकालत को चुनौती दी गई। डांगी ने तर्क दिया कि कोर और फ़्लोरिडा क्षेत्र को निर्धारित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था और राज्य सरकार ने टाइगर रिज़र्व की स्थिति के लिए इसे ऑस्ट्रियाई सागर में दे दिया था।
‘एनटीसीए ने बीडब्ल्यूएस को टाइगर गैलरी का हिस्सा माना’
नियमों के अनुसार राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) यदि देश में किसी भी क्षेत्र को टाइगर रिजर्व की गारंटी देता है तो संबंधित राज्य सरकार इसे अपने लाभ के लिए ले सकती है। भोरमदेव पोटेशियम अभ्यास (बीडब्ल्यूएस) को टाइगर रिजर्व के रूप में स्थापित करने के लिए एनटीसीए ने सहमति व्यक्त की थी, मगर उन्होंने राज्य सरकार को जो पत्र लिखा था, उसमें स्टॉक की बजाय यह सुझाव दिया गया था कि गले की हड्डी मजबूत हो और वर्तमान सरकार ने हजारों लोगों को एकजुट करने और अन्य निर्देश दिए हैं। टाइगर रिजर्व का प्रस्ताव खारिज कर दिया गया।
बता दें कि एनटीसीए ने भोरमदेव अभयारण्य (बीडब्ल्यूएस) को देश के सबसे बड़े टाइगर गार्डन (शेरों के आने-जाने का मार्ग) का अहम हिस्सा माना था। यह कान्हा किसली नेशनल पार्क प्रदर्शनी से शुरू हुआ। यहां से भोरमदेव अभ्यारण्य उत्पन्न हुआ यह मार्ग अचानकमार (एटीआर) और फिर गुरु घासीदास रिजर्व से संजय डुबरी नेशनल पार्क और वापस बांदव गढ़ नेशनल पार्क में फिर से लुप्त हो जाता है। अन्य गुरु घासीदास रिजर्व से एक टाइगर गैलरी झारखंड के पलामू रिजर्व तक भी बना है। इसके अलावा एक अन्य टाइगर रिजर्व महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के ताड़ोबा अंधेरी टाइगर रिजर्व से शुरू होता है। बताया जाता है कि यहां बाघ बड़ी संख्या में हैं। यहां से एक मार्ग नवेगांव नाधिरा टाइगर रिजर्व, भंडारा होता हुआ यह वापस भोरमदेव अभयारण्य में मिलता है। यह भी लिखा है कि इंद्रावती टाइगर रिजर्व भी भोरमदेव अभ्यारण्य से डूबा हुआ है।
कान्हा किसली का बॉलर जोन BWS है
सबसे खास मध्य प्रदेश में भोरमदेव पवित्र अभयारण्य (बीडब्ल्यूएस) कान्हा किसली टाइगर रिजर्व के बैरल जोन के रूप में जाना जाता था और इस क्षेत्र में बमुश्किल 500 लोगों की ही बसाहट थी। तब यहां किसी के पहचान के खिलाफ कार्रवाई हुई थी और यहां टाइगर रिजर्व के रहने को भी बसने पर पूरी तरह से रोका गया था। नये छत्तीसगढ़ राज्य के उदय के बाद भोरमदेव का केवल अभ्यारण्य बन कर रह गया।
नये राज्य में व्यवस्था में वृद्धि हुई
जानकार बताते हैं कि नए छत्तीसगढ़ राज्य में कान्हा किसली से अलग भोर में देवलोक निवास (बीडब्ल्यूएस) में व्यवस्था काफी बढ़ गई है। राज्य बनने के दौरान इस जंगल में जहां हजारों से भी कम लोग रहते थे, दशक के दशक में उनकी संख्या 17 हजार से ज्यादा हो गई। स्वाभाविक बात यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य में वन्यजीवों का अच्छी तरह से पालन-पोषण नहीं किया गया और जंगल की जमीनों पर बेथाशा का व्यवसाय हो गया।
सोमनाथ भोरमदेव सोमनाथ अभ्यारण्य (बीडब्ल्यूएस) को टाइगर रिजर्व बनाने के लिए एनटीसीए के एकमात्र ‘सुझाव’ और अरसे से जंगल में हो चुके हजारों लोगों की बसाहट को देखते हुए हाई कोर्ट ने अंतिम संस्कार की अर्जी दी है। इस मामले में किसी ने कहा है कि टाइगर रिज़र्व में बसाहट का बजट नहीं है। उन्होंने बताया कि आश्चर्यजनकमार टाइगर रिजर्व क्षेत्र में कुल 25 गांव अवस्थित थे और अब तक यहां से 6 जंगलों को ही खाली किया जा सका है। ऐसा ही भोरमदेव अभ्यारण्य में भी किया जा सकता था।