सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को लेकर अहम फैसला सुनाया है। एक मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं भी पति से गुजराता भत्ता मांग सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 (Section 125 of CrPC) के तहत मुस्लिम तलाकशुदा महिला पति से गुजराता भत्ता की मांग कर सकती है।
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उत्साहित ईमानदार हाईकोर्ट ने मोहम्मद अब्दुल समद को अपनी तलाकशुदा पत्नी को हर महीने 10 हजार रुपये गुजराता भत्ता देने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट लाया गया। आज (10 जुलाई) को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बड़ा फैसला सुनाया।
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न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिम महिला भरण-पोषण के लिए कानूनी अधिकार का इस्तेमाल किया जा सकता है। वह इससे संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत याचिका दायर कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह धारा सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है, इसलिए उनका धर्म कुछ भी हो सकता है। मुस्लिम महिलाएं भी इस पैकेज का सहारा ले सकती हैं। कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि मुस्लिम महिला अपने पति के खिलाफ धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण के लिए याचिका दायर कर सकती है।
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न्यायालय ने माना कि ‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) अधिनियम 1986’ धर्मनिर्पेक्ष कानून पर हावी नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति नागरत्ना और न्यायमूर्ति मसीह ने अलग-अलग, लेकिन सहमति वाले निर्णय दिए। हाईकोर्ट ने मोहम्मद समद को 10 हजार रुपये गुजराता भत्ता देने का निर्देश दिया था।
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मामला क्या है?
अब्दुल समद नाम के एक मुस्लिम शख्स ने पत्नी को गुजरात भत्ता देने के गंभीर आरोप को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट में शख्स ने दलील दी थी कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की हकदार नहीं है। महिलाओं को मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 अधिनियम के तहत ही चलना होगा। ऐसे में अदालत के सामने सवाल आया कि इस मामले में मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 को प्राथमिकी मिलनी चाहिए या सीआरपीसी की धारा 125 को लागू किया जाना चाहिए।
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सीआरपीसी की धारा 125 क्या है
सीआरपीसी की धारा 125 में पत्नी, पुत्र और माता-पिता के भरण-पोषण को लेकर विस्तार से जानकारी दी गई है। इस धारा के अनुसार पति, पिता या संतान पर प्रतिभा पत्नी, माता-पिता या संताने-भत्ते का दावा केवल तभी कर सकते हैं, जब उनकी पास आदत का कोई और साधन उपलब्ध न हो।
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