देवी का अभिशाप, इस गांव के ग्राम पुजारी परिवार की बहुओं को सुहागन की तरह दिखने की है मनाही…

कोसमी गांव में ग्राम पुजारी परिवार की बहुओं को सुहागन की तरह दिखने की मनाही है। विधवा और सुहागन में अंतर चूड़ी का होता है। सुहागन कंस की तो, विधवा चांदी की दरार चूड़ी पहनती है।

पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। देवी के अभिशाप के कारण सात पीढ़ियों से इस परंपरा का निर्वाहन कर रहे हैं। परिवार के अध्याय लिखे जाते हैं और नई पीढ़ी इसे परंपरा को अपनाना चाहती है, पर आस्था आ जाती है। यह वे अंधविश्वास नहीं बल्कि अनुग्रह मान से मिले अब विश्वास कर लिया है। शादी के मंडप से शुरू हुई बिना सिंगर के सफेद लिबाज पुजारी परिवार के बहुओं के अंतिम सांस तक बना रहता है। यह भी पढ़ें : बलौदाबाजार की घटना पर भूपेश बघेल के आरोपों पर राजेश मूणत का पलटवार, कहा-बोलने से पहले तथ्य जान लें पूर्व मुख्यमंत्री…

गरियाबंद ब्लॉक के कोसमी गांव के ग्राम देवी के पुजारी ध्रुव आदिवासी परिवार की बहुओं को सुहागन की तरह दिखने, सजने संवरने पर मनाही है। कांसे की चूड़ी व गले में मंगल सूत्र पहना जा सकता है, बाकी सभी लिबास विधवा की तरह होता है। कोसमी में पुजारी खानदान के 32 परिवार रहते हैं। परिवार में चौथी पीढ़ी की एक विधवा माँ है, पाँचवीं पीढ़ी की 8 बहू है, जिनमें से 3 विधवाएँ हैं। इसके अलावा 6वीं पीढ़ी की 10 बहुएं भी मौजूद हैं, जो पिछले कई परिस्थितियों से मणि जा रही हैं।

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देवी का मिला था अभिशाप

पुजारी के उत्तराधिकारी वर्तमान ग्राम पुजारी फिरत राम ध्रुव बताते हैं कि उन्होंने अपने पिता देवसिंह से सुना था कि परदादा नागेंद्र शाह से पहले उनके पूर्वज, जो ग्राम के पुजारी हुए करते थे, उनके किसानी कार्य के बाद देवी उन्हें महिला के वेश में आकर रोजाना खाना खिलाती थीं। फूंक-फूंक कर कदम रखते थे. कई दिनों तक जब पुजारियों ने भोजन का बना हुआ घर वापस आने लगा तो भोजन का रहस्य पुजारियों के सामने उजागर हो गया।

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पुजारी के भोजन के वक्त पराई महिला भोजन लेकर आई। उसी के हाथ का भोजन पुजारी कर ही रहे थे तभी पुजारिन महिला की पिटाई शुरू कर दी। तभी तो देवी ने परिवार को अभिशाप देते हुए कहा कि परिवार की बहुएं सुहागन की तरह दिखेंगी तो शारीरिक कष्ट झेलेंगी। तब से लेकर आज कई पीढ़ियों से परिवार की बहुएं विधवाओं के लिबास में रहते हैं। पुजारी ने बताया कि वे धूमादेवी थीं, जिन्हें हम आत्माओं से बड़ी माई के रूप में पूजते आ रहे हैं।

पारंपरिक विनाश पर होता है शारीरिक कष्ट

छठी पीढ़ी की बहू कमली बाई ने बताया कि 37 साल पहले जब उन्होंने शादी की तो स्वाभाविक रूप से माथे पर सिंदूर व टीका लगा लिया, तब सिर दर्द हुआ। गांव से बाहर माइके जाकर रंगीन कपड़े पहनने की कोशिश की तो कमर दर्द और अन्य शारीरिक कष्ट हुए। अन्य बहुओं के साथ अपनी आँखों को भी किस्से का जिक्र कर कहते हैं कि अंगूठी, बिछिया पहनने में सूजन आती है।

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अंधविश्वास नहीं आस्था का विषय

परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े गए हरि ध्रुव गरियाबंद सहकारी बैंक के प्रबंधक हैं। वे कहते हैं कि यदि यह अंधविश्वास हुआ तो टूट गया, लेकिन अब यह आस्था बन गया है। उनकी पत्नी ललिता कहती हैं कि वे मंगलसूत्र पहन सकती हैं, इसके अलावा वे कांसे की चूड़ी भी पहनती हैं। विधवा महिलाओं को चांदी की चूड़ी पहनी जाती है, जिसे क्रैक किया जाता है। ललिता लिखी भी है. पति नौकरी के अनुकूल हमेशा घर से बाहर रहते हैं। गांव में लिबास लेकर कोई बात नहीं, लेकिन बाहर में लोगों की जिज्ञासा शांत करना पड़ता है।

नई पीढ़ी को आदर्श बनाना चाहिए लेकिन

बहू बनाने से पहले परिवार के इस नियम को संबंधियों को वाकिफ कराया जाता है। होने वाली बहू की राजामंडी के बाद ही बात आगे बढ़ती है। पहले तो रिश्ता आसान था. 5वीं पीढ़ी के बाद रिश्तों में मुश्किलें आना स्वाभाविक है। अब 6वीं पीढ़ी के बेटे भी चाहते हैं कि यह रिश्ता बदले। लेकिन परिवार के बड़े सदस्य चाहकर भी इसे बदल नहीं रहे हैं। परिवार के वरिष्ठ विष्णु ध्रुव कहते हैं कि यह कोई अविश्वास नहीं है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि एक दिन उन्हें वास्तविकता के बदले संकेत अवश्य मिलेगा।