रायपुर। खैर, कबीरा खड़ा बाजार में सबकी मदद, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर… यह शांति और सद्भाव का संदेश कबीर पंथ यानी कबीर का मार्ग या कबीर का मार्ग है। कबीर पंथ कोई धर्म या जाति नहीं है, बल्कि सतगुरु कबीर साहब द्वारा दिखाया गया एक मार्ग है। छत्तीसगढ़ में कबीर पंथ को मानने वालों की संख्या बहुत है। कुछ क्षेत्र में इस पंथ के लोगों का अच्छा प्रभाव है।
माणिकपुरी पनिका समाज और शाह समाज के लोग बड़ी प्रगति में कबीर पंथ से जुड़े हुए हैं। छत्तीसगढ़ में करीब 72 लाख लोग इस पंथ को मानते हैं। इविवि में इनकी जनसंख्या करीब 96 लाख है। छत्तीसगढ़ के अलावा पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, गुजरात में कबीरपंथी बहुत हैं। विद्युत् जिले में से एक पोटियाकला गांव है।
इसमें गिने चुने घर को छोड़ पूरा गांव कबीरपंथियों का है। कबीरपंथी मानते हैं कि आज कबीर की प्रासंगिकता और वृद्धि हुई है। चारों तरफ पाखंड का बोलबाला है, ऐसे में कबीर का मार्ग इससे बचाया जा सकता है। युवा वर्ग के मांस मदिरा जैसे अन्य दुष्टों के शिकार हो रहे हैं, कबीर का मार्ग उन्हें भटकाव से बचा सकता है। कबीर पंथ सतमार्ग पर चलता है। पाखंड के लिए कोई जगह नहीं है। इस मार्ग कर्मप्रधान हैं, पर फालतू के कर्मकांड के कबीरजी सख्त विरोधी थे।
संत कबीर को अवतारी मानते हैं हम
वैराग्य के लिए घर परिवार को छोड़ना जरूरी नहीं है। कबीरपंथी ईश्वर के निर्गुण रूप की उपासना करते हैं और किसी भी प्रकार की पूजा और पाठ से दूर रहकर ईश्वर की भक्ति को ही सर्वोपरी मानते हैं। संत कबीर के अनुयायियों को अवतारी मानते हैं। उनका जन्म किसी मां के गर्भ से नहीं हुआ। वे काशी के तहराताला तालाब में कमल पुष्प पर शिशुरूप में प्रकट हुए। नीरू (नूर अली) और उसकी पत्नी नीमा ने उसे अपने घर जुलाहा में ले जाकर उसका पालन-पोषण किया। श्रीरामानंदाचार्य महाराज उनके गुरु थे। कबीर पंथ में संत कबीर द्वारा लिखित ग्रन्थ को बीजक माना जाता है और इसे सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। बीजक ग्रंथ के अनुसार ही भगवान की पूजा होती है और शेष के धार्मिक कार्य होते हैं। बीजक का शब्दिक अर्थ होता है बीज।
कबीरपंथियों का राज्य मुसावादीहछत्तीसगढ़ में कबीरपंथियों के तीर्थों में दामापार्क के बाद मुसावादीह का दूसरा स्थान है। साजा ब्लॉक के ग्राम मुसावादीह में स्थित देश के छठें कबीर शांति स्तंभ में दिया गया है। कबीरपंथियों के लिए यह क्षेत्र आस्था का राष्ट्रीय प्रतीक बन चुका है।
देवारीभाट के निवासी थे संत मनिहार दीवानप्राप्त जानकारी के अनुसार संत मनिहार दीवान साहेब मूलत: मुसवद्दीह के निवासी नहीं थे, बल्कि वे खैरागढ़ के समीप ग्राम देवारीभाट के निवासी बताए जाते हैं। वर्तमान में ग्राम मुसवद्दीह व आसपास के क्षेत्र में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसने दीवान साहब को देखा हो। इस गांव में संत मनिहार दीवान साहब की समाधि का निर्माण भगवान के बुर्जुगों के द्वारा किया गया था। पुरानी परंपरा के अनुसार दीवान साहेब के मठ में हर साल कबीर पंथ तथा अन्य स्थानों के लोग यहां से जुड़ी हुई हैं, चौका-आरती करते हैं।