डॉ. दिनेश मिश्र, अध्यक्ष, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति
अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्रा ने बताया कि गरम सरकार ने एक आदेश जारी किया है कि गरम में ईदुलजुहा (बकरीद) में तुर्कों को काटने सहित किसी भी मकसद से लाना अवैध है। कानून तोड़ने वालों पर मामला दर्ज कर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वहीं दूसरी ओर जन जागरूकता अभियान के चलते देश के कुछ स्थानों से पिछले वर्ष जीवित प्राणियों की कुर्बानी देने के बदले केक काटकर धार्मिक रस्म अदा करने के इको फ्रेंडली ईद मनाने के उदाहरण सामने आए।
डॉ. दिनेश मिश्रा ने बताया कि, ईमानदार हाई कोर्ट में ईदुलजुहा (बकरीद) के दौरान कुर्बानी देने पर रोकथाम की मांग वाली एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इस जनहित याचिका पर सुनवाई करने के बाद आदेश जारी होते हुए कोर्ट ने कहा कि परंपरा के नाम पर हमला करने को न मारा जाए। इसके पहले महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश में भी विभिन्न धार्मिक अवसरों पर अलग-अलग समय पर भगवान की कुर्बानी देने के आदेश जारी किए गए हैं।
राजस्थान, उत्तरप्रदेश में ईदुलजुहा (बकरीद) पर विभिन्न जानवरों की कुर्बानी देने के मामले कुछ स्थानों पर सामने आए हैं। उत्तराखंड में उच्च न्यायालय ने 2018 में सभी धार्मिक आयोजनों में होने वाली कुर्बानी/पशुवध सहित सार्वजनिक स्थानों में कुर्बानी देने पर रोक लगा दी थी। उत्तरप्रदेश में सन् 2017 में गाय, बैल, भैस, तुरही आदि जानवरों की कुर्बानी पर प्रतिबंध जारी किया गया था। वहीं महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने भी 2018 में बकरीद के पहले ही विभिन्न भेड़, बकरियों, कुत्तों के कुर्बानी के लिए होने वाले धड़ल्ले से जारी होने वाले एक्सप्लोजन लाइसेंस के खिलाफ याचिका दायर की थी।
अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्रा ने कहा कि देश के अनेक राज्यों में पशुबलि के निषेध के सम्बंध में कानून बने हुए हैं और उनका पालन न होने से लाखों निर्दोष निर्दोष कुत्तों की कुर्बानी दी गई है। जबकि सभी धर्म प्रेम, अहिंसा की शिक्षा देते हैं। अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किसी अन्य प्राणी की जान लेना ठीक नहीं है।
डॉ. दिनेश मिश्रा ने कहा कि पिछले कई वर्षों से पशुओं की कुर्बानी, पशु वध/बली की क्रूर परंपराओं के विरोध में जनजागरण कर रही हैं, पिछले वर्ष महाराष्ट्र के कोराडी के मंदिर में बेमेतरा तथा कुछ अन्य स्थानों में बलि परंपरा बंद हुई है। वहीं बकरीद में भी अनेक स्थानों पर मुस्लिम धर्मावलंबियों ने कुर्बानी की परंपरा का परित्याग किया।
पिछले वर्ष कुछ अन्य देशों के साथ भारत में भी लखनऊ, आगरा, मेरठ, मूर्तियों सहित अनेक स्थानों में जन जागरण के अनुष्ठानों से लोगों ने ईदुलजुहा (बकरीद) में बकरे के स्थान पर केक काटा, तो कुछ स्थानों पर लोगों ने केक पर ही बकरे का चित्र लगाया और बकरा केक काटकर न केवल सांकेतिक रूप से धार्मिक रस्म अदा की, बल्कि निर्दोष प्राणियों की रक्षा की।
महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी भी अहिंसा के सिद्धांत को उजागर करते रहते हैं। महावीर स्वामी ने जियो और जीने दो के सिद्धांत को प्रमुखता दी है, वहीं उनके उद्धरणों में महात्मा बुद्ध ने कहा है कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। यदि हम किसी को जीवन नहीं दे सकते, तो हमें किसी का जीवन लेने का अधिकार नहीं है।
डॉ. दिनेश मिश्रा ने कहा कि कुर्बानी का अर्थ त्याग करना होता है। अपनी ओर से किसी जीवित प्राणी को नगद राशि, दवा, कपड़े, किताबें, स्कूल फीस आदि दान कर भी आत्मसंतुष्टि पाई जा सकती है, साथ ही देश के अन्य प्रदेशों की तरह किसी जीवित प्राणी को काट कर उसकी जान कुर्बान करने के स्थान पर केक काट कर न केवल धार्मिक रस्म अदा करने बल्कि श्रेष्ठ प्राणियों की जान बचाने की पहल की जा सकती है।