- 13 Aug 2018
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जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर उनके एक करीबी ने गंभीर आरोप लगाए हैं. वर्षों तक कन्हैया के साथ काम करने वाले और जेएनयू कैंपस में उनके कऱीबी माने जाने वाले जयंत जिज्ञासू ने एआईएसएफ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है. इस्तीफे के साथ ही उन्होंने कन्हैया पर जातिवादी होने, जेएनयू कैंपस में संगठन को बर्बाद करने और कन्हैया पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है.
अपने इस्तीफ़े की घोषणा करते हुए जयंत ने फ़ेसबुक पोस्ट में एक पत्र भी शेयर किया है, जो उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के महासचिव, सुधाकर रेड्डी के नाम लिखा है. जयंत अपने लेटर के दूसरे पैरा में लिखते हैं, ‘कॉमरेड, संगठन और पार्टी में एक पूरा पैटर्न दिखता है कि शोषित-उपेक्षित-वंचित-लांछित-उत्पीडि़त लोगों को बंधुआ मज़दूर समझ कर उनके साथ व्यवहार किया जाता रहा है. झंडा कोई ढोता है, नेता कोई और बनता है.
सुधाकर रेड्डी के नाम लिखे गए इस ख़त में जयंत ने ना केवल कन्हैया पर हमला बोला है, बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के काम करने के तौर-तरीक़ों पर भी सवाल उठाया है. वो अपने पत्र में लिखते हैं, ‘आज भी पार्टी किसी दलित को अपना महासचिव बनाने में इतना क्यों सकुचाती-शर्माती है, यह भी समझ से परे है. हर महत्वपूर्ण कार्यक्रम, सर्वदलीय बैठक, विपक्षी जमावड़े के मौक़े पर डी. राजा नजऱ आते हैं, वह राष्ट्रीय सचिव हैं, मगर वो पार्टी को चला सकें, उस अपेक्षित विवेक का दर्शन पार्टी उनमें क्यों नहीं कर पा रही है.
१५ सितंबर २०१७ को भी इसी प्रकार के आरोप कम्युनिस्ट पार्टी पर रिताब्रता बैनर्जी ने लगाये थे :
वामपंथियों के बारे में सबको पता है कि वो ‘सादा जीवन, उच्च विचार में यकीन रखते हैं. लेकिन सभी लेफ्ट नेता दुनियावी लुत्फों से, तड़क-भड़क भरी जिंदगी से खुद को दूर नहीं रख पाते.
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद का सादा रहन-सहन तो आज किस्से कहानियों की तरह सुनाया जाता है. लेकिन, ऐसा नहीं है कि सिर्फ वामपंथी ही सादगी पसंद हैं. दुनिया में और भी बहुत लोग हैं जो सादगी का जीवन जीते हैं. जैसे अरबपति कारोबारी अजीम प्रेमजी आज भी हवाई यात्रा में इकोनॉमी क्लास में ही सफर करते हैं.
वामपंथियों की सादगी का ये जिक्र हाल की एक घटना से हो रहा है. सीपीएम ने अपने राज्यसभा सांसद रिताब्रता बनर्जी को तीन महीने के लिए सस्पेंड कर दिया है. उन पर आरोप है कि वो वामपंथियों की तरह का नहीं, पूंजीपतियों की तरह की रईसाना जिंदगी जी रहे हैं.
मेड इन अमेरिकी सिगरेट पीते हैं सीताराम येचुरी
सादगी और विनम्रता तो हर इंसान का अपना अलग-अलग गुण होता है. सीपीएम को तड़क-भड़क वाली जिंदगी से ही ऐतराज है. लेकिन वो इस मुद्दे पर अपने एक सांसद और शानदार प्रवक्ता पर ही कार्रवाई कर देगी, इसका अंदाजा नहीं था.
रीताब्रता बनर्जी से पहले सीताराम येचुरी पर सवाल उठने चाहिए
हर पार्टी को अपनी विचारधारा रखने का हक है. शायद अब वक्त है कि हर राजनैतिक दल को अपनी सनक का एक खास कोटा रखने का भी अधिकार दिया जाना चाहिए. लेकिन यहां पर मुद्दा ये नहीं है. यहां हमें सीपीएम के दोहरे रवैये पर सवाल उठाने चाहिए.
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अगर रिताब्रता बनर्जी ने पार्टी की विचारधारा के खिलाफ जाकर काम किया है, तो सवाल पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी पर भी उठते हैं. येचुरी को भी चाहिए था कि वो अपने बर्ताव से मिसाल कायम करते. येचुरी की शोहरत एक अच्छे वक्ता के तौर पर है. वो जिस तार्किक ढंग अपनी बात रखते हैं, वो काबिले-तारीफ है.
लेकिन येचुरी अपनी मेड इन अमेरिका स्टेट एक्सप्रेस सिगरेट के शौक के लिए भी जाने जाते हैं. अगर रिताब्रता बनर्जी शहाना जिंदगी जीने के गुनहगार हैं. तो सीताराम येचुरी को भी उनकी पार्टी ने अमीरों वाले ऐब के साथ जीने की आजादी दे रखी है. ऐसे में सिद्धांत और विचारधारा पर कार्रवाई सिर्फ एक पर ही क्यों? हो सकता है कि येचुरी ने तंबाकू के खिलाफ मुहिम से प्रभावित होकर अब सिगरेट का शौक छोड़ दिया हो.
जहां तक आधुनिक तकनीक की बात है, तो, आज की तारीख में कोई भी पार्टी उनके विरोध का जोखिम नहीं ले सकती. आपको याद होगा कि जब राजीव गांधी ने रेलवे रिजर्वेशन और बैंकों का कंप्यूटरीकरण किया था, तो ये वामपंथी इसके खिलाफ मोर्चा बनाकर सड़कों पर उतर आए थे.
आज ये लोग अपनी उस पुरानी सोच को लेकर जरूर शर्मिंदा हो रहे होंगे. वामपंथियों के दोगलेपन की बहुत चर्चा जरूरी नहीं. ये तो जगजाहिर है. क्या आज वो खुद कंप्यूटर, स्मार्टफोन और आज के दौर के दूसरे गैजेट्स नहीं इस्तेमाल करते? क्या वो अस्पतालों में नई मशीनों की मदद से इलाज नहीं कराते?
रिताब्रता बनर्जी को सस्पेंड करके सीपीएम के आकाओं ने अपनी बेवकूफी को ही उजागर किया. ऐसी हरकतों के बाद सियासी दल अक्सर इसे पार्टी का अंदरूनी मामला कहकर सच को छुपाने की कोशिश करते हैं. लेकिन अगर किसी नेता के रहन-सहन और आजाद खयाल होने पर पार्टी में चर्चा होने लगे, तो पूरा सच जनता के सामने भी आना चाहिए.
रीताब्रता के बाद अब कन्हैय्या और कम्युनिस्ट पार्टी पर गंभीर इल्जाम बताते हुए उन्हें जातीवादी और झूठा करार दिया है।
कन्हैया के बारे में लिखते हुए जयंत बहुत सख़्त हो जाते हैं. वो कन्हैया पर जातिवादी होने का आरोप लगाते हैं. वह जेएनयू कैंपस में संगठन को बर्बाद करने का आरोप लगाते हैं और तो और कन्हैया कुमार पर झूठ बोलने का भी आरोप लगाते हैं.
सोशल मीडिया पर शेयर किए अपने पत्र में जयंत लिखते हैं, ‘दलित-पिछड़े-आदिवासी-अकलियत किन्हीं के भी नेतृत्व में काम कर लेते हैं, मगर तथाकथित उच्च जातियों के लोगों को पिछड़े-दलित-आदिवासी का नेतृत्व सहज भाव से स्वीकार्य नहीं है. अपमानित करने के इतने लेयर्स हैं कि कहां-कहां से बचा जाए, जूझा जाए.
यहां साफ़ है कि इशारा कन्हैया कुमार की तरफ़ है. लेकिन इसके बाद जयंत कन्हैया का नाम लेकर सीधे-सीधे हमला करते हैं. उनके मुताबिक, ‘जो भी लोग जेएनयू में चुनाव लड़ लेते हैं, वो ख़ुद को आश्चर्यजनक ढंग से संगठन की गतिविधियों से किनारा कर लेते हैं. कहीं कास्ट एरोगेंस है तो कहीं क्लास एरोगेंस. मुझे आपके साथ हुई एक बैठक याद है जिसमें कॉमरेड कन्हैया ने कहा कि मैं जेएनयू एआईएसएफ यूनिट का हिस्सा नहीं हूं.
वो आगे लिखते हैं, ‘जिस व्यक्ति के साथ हुई ज़्यादती के ख़िलाफ़ पूरा जेएनयू और देश का प्रगतिशील व सामाजिक न्यायपसंद धड़ा साथ खड़ा था, उसी कन्हैया ने जेएनयू स्ट्युडेंट कम्युनिटी के साथ धोखा किया.
अपने पत्र में जयंत जिज्ञासू ने कन्हैया कुमार और पूरी पार्टी पर कई आरोप लगाए हैं. लेकिन पत्र के आखऱि में जो लिखा है वो बेहद चौंकाने वाला है. वो लिखते हैं, ‘कॉमरेड, मौजूदा हालात में जबकि ‘ज्ञानी-ध्यानी लोगों ने पूरे तंत्र को हाइजैक कर रखा है, पूरा संगठन वन मैन शो बनकर रह गया है, शक्ति-संतुलन के नाम पर मुझे धमकी दिलवाई गई, इन गुंडों से मेरी जान पर ख़तरा है, बहुत घुटन का माहौल है.
अपने पद से इस्तीफ़ा देते हुए जयंत ने जो आरोप कन्हैया पर लगाए हैं वो काफ़ी गंभीर हैं. खबर लिखे जाने तक कन्हैया की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. आखऱि में यह समझ लीजिए कि जनंत-कन्हैया की जोड़ी के क्या मायने हैं. कैंपस में जयंत और कन्हैया की जोड़ी वैसे ही थी जैसे, शोले फि़ल्म में जय और वीरू की और राजनीति में मोदी और अमित शाह की है.